Friday, December 30, 2011

नया साल

नव-वर्ष की शुभकामनाओं के साथ

साल इक बार फिर से नया हो चला
बाग़ हर ज़िन्दगी का हरा हो चला

था भला या बुरा जो गया है गुज़र
फिर दोबारा नये का नशा हो चला

हर कोई हर किसी से गले मिल रहा
सिलसिला अब ख़ुशी का घना हो चला

तुम जिसे कह रहे थे दुखों का नगर
हर गली में ख़ुशी का पता हो चला

फूल हम दे रहे हैं बधाई के तुझे
जान लो साले नौ अब खरा हो चला


एक बार फिर सबको नये साल की बधाई हो...

Friday, December 23, 2011

शक्तियों शक्ति दो

दिक्कतों से जूझता
तम है गहरा
कुछ न सूझता,
विश्व रंगहीन हो गया
कौन अब
किसी को पूछता,
इस कठिन काल में
कोई एक युक्ति दो
शक्तियों शक्ति दो
शक्ति दो,

विश्वास चरमरा रहा
हौसला भी डगमगा रहा,
बस रहा था मन में जो
दूर हमसे क्यों वो जा रहा,
हृदय से भावनायें मेट कर
मुक्ति दो
शक्तियों शक्ति दो
शक्ति दो

हर तरफ़
नियम का ही जाल है
ज़िन्दगी सवाल पर
सवाल है,
यदि प्रेम से जीये चलो तो
बस कमाल ही
कमाल है,
प्रेम ही रचा हो जिसमें
ऎसी एक पंक्ति दो
शक्तियों शक्ति दो
शक्ति दो...

Wednesday, December 7, 2011

देर न कर फ़ैसला कर

अच्छा-बुरा, उचित-अनुचित
न्याय-अन्याय, पाप-पुन्य
सत्य-असत्य, दण्ड या माफ़ी
ये सब तू जाने
मैं तो केवल जानूं
उमड़ती भावनायें, उड़ती अभिलाषायें
घुटती तमन्नायें, सुलगती चिन्गारियां
मचलती किलकारियां,
मैं तो केवल जानूं
सुख-दुख, मिलना-बिछड़ना
रिश्ते-नाते, जोड़-घटाव
उतार-चढ़ाव, दोस्ती-दुश्मनी
जीवन-मृत्यु,
मगर हाँ,
मैं ये भी जानूं कि
नीयति की डोर
तेरे हाथ है
निर्णय की चाभी
तेरे पास है,
तो देर न कर
फ़ैसला कर,
आसामी है हाज़िर
रहने दे इसी जेल में
या
निकाल दे बाहिर
देर न कर
फ़ैसला कर
फ़ैसला कर...

Sunday, December 4, 2011

लीला दिखाया न कर

हर घड़ी तू मुझे आजमाया न कर
मैं तो इन्सान हूँ ये भूल जाया न कर

साथ देने का वादा किया तूने तो
राह में ही मुझे छोड़ जाया न कर

ढूँढता मैं तुझे हर जगह हर गली
दे ज़रा सी झलक छुप तो जाया न कर

चल रहा मैं अकेला बहुत देर से
साथ दे दे ज़रा यूं सताया न कर

बेख़बर था बहुत मैं किसी दौर में
याद उस दौर की अब दिलाया न कर

ज़िन्दगी चीज़ है बेरहम आजकल
सपनों से और इसको लुभाया न कर

जब तेरी मौज में डूबता मैं कभी
उस ख़ुशी से मुझे दूर लाया न कर

पास भी तुम नहीं दूर भी तुम नहीं
ऐसी निर्मल को लीला दिखाया न कर

Monday, November 28, 2011

दिले-गुलशन सजा लेते

मेरी दुनिया में आ जाते नई दुनिया बना लेते
अगर तुम साथ होते तो ज़माने को झुका लेते

हवा का रुख़ बदल जाता समय की धार थम जाती
मुहब्बत से सितारों को ज़मीं पे हम बुला लेते

ख़ुशी की बात होती या ग़मों की दास्तां होती
ज़रा तुमसे सुना करते ज़रा अपनी सुना लेते

कभी ख़ामोश हो लेते कभी हम गुनगुना लेते
कभी मदहोश होकर हम तुझे तुमसे चुरा लेते

दीवाने हम हुये रहते दीवारों पर लिखा करते
कभी जो रूठ जाते तुम तभी तुमको मना लेते

जो सपनों से उतर कर तुम हक़ीक़त में चले आते
तो फिर हम भी मुहब्बत से दिले-गुलशन सजा लेते

Friday, November 25, 2011

ख़ुशियाँ

बड़ी मुश्किल से मिलती हैं ज़माने में कभी खुशियाँ
सम्हालो प्यार से इनको ख़ुदा से जो मिली ख़ुशियाँ

कभी तो चाँद बन के ईद का उतरी तेरे आँगन
दिया बन के दिवाली का कभी घर में सजी ख़ुशियाँ

ये माना कि ज़माने को ग़मों ने घेर रक्खा है
ज़रा घेरे से निकलो तो दिखे दर पे खड़ी खुशियाँ

जो मिल-जुल के रहें हम-सब यहाँ इस दौर में अपने
तो ये जानो कि हम-सब की संवारे ज़िन्दगी ख़ुशियाँ

कभी सावन चला आता कभी पतझड़ नज़र आता
जो देखोगे तो हर मौसम के पीछे हैं छुपी ख़ुशियाँ

न शिकवे हों, शिकायत हो किसी से तुमको अब निर्मल
जो तुम अपने में झांकोगे नज़र तब आयेंगी ख़ुशीयाँ

Tuesday, November 15, 2011

ख़ुदा ही हरदम

ख़ुदा ही हरदम

मैं चल पड़ा अब तेरे सहारे
पड़ा था कबसे कहीं किनारे

कहीं न हरकत कहीं न हलचल
जमे हुये थे क़दम हमारे

बन्द घड़ी हो गया था जीवन
सुने न कोई किसे पुकारे

कभी मुझे कुछ नज़र न आया
दिखे जो तुम तो दिखे नज़ारे

कहीं न जाने देना है तुझको
बने हो अब तो सनम हमारे

तेरी तमन्ना तेरी इबादत
यही मुक़द्दर करे इशारे

खुदा ही हरदम ख़ुदा ही हरपल
संग हमारे संग तुम्हारे

Monday, November 14, 2011

वक्त की तलवार

वक्त की
दोधारी तलवार तले
मन का परकटा पंछी
दम तोड़ने को है,
ज्यों
मांस का एक
बेजान लोथड़ा
तराजू पे निरीह पड़ा
बिकने को है,
यहाँ
हर किसी ने
देखी है शक़्ल
हर किसी ने
आँकी है अक़्ल,
शायद ही कोई
उतर पाया हो
मन के भीतर
शायद ही किसी को
भाया हो
ये प्यारा नगर,
यूं तो
आसान भी नहीं होती
दिल की इबारत
वही पढ़ पाता है इसे
जिसपे हो कोई इनायत,
मगर अब तो
वही क़िस्सा वही बात
दोहराने को है
सफ़र हो चला तमाम सब
गाड़ी का पहिया अब
थम जाने को है...

Tuesday, November 8, 2011

ये हो नहीं सकता

जुदा तुमसे रहूँ मैं इक घड़ी ये हो नहीं सकता
अगर ऐसा हुआ तो फिर कभी मैं सो नहीं सकता

न जाने किस दुआ बदले ख़ुदा ने तुझको भेजा है
मुझे लगता जो देखे ख़्वाब थे उनका नतीजा है
क़सम तेरी किसी कीमत तुझे अब खो नहीं सकता

ज़रा सा दूर भी जाओ तो मेरा दिल धड़कता है
रहो नज़दीक मेरे हर घड़ी हर पल ये कहता है
कभी मैं सोचता भी वो नहीं, जो हो नहीं सकता

मुहब्बत एक ख़ुशबू है कभी जो मिट नहीं सकती
जवां रहती ये सदियों तक दिलों से हट नहीं सकती
मुहब्बत के बराबर तो कोई भी हो नहीं सकता
जुदा तुमसे रहूँ मैं इक घड़ी ये हो नहीं सकता.....

Saturday, November 5, 2011

बन खिलौना

बन खिलौना
इस हाथ से उस हाथ
मैं बिकती रही
चाहत से ममता
के बीच ज़िन्दगी
मेरी बंटती रही,

प्रेम-बीज
रोपने की कोशिश में
हाथ छिल गये,
मन को
संभालने की आरज़ू में
रिश्ते हिल गये,
क़दम-क़दम और
घड़ी-घड़ी ख़ुशी मेरी
लुटती रही,

हौसला कर
कभी कुछ करने की
मैने जो ठानी,
बेड़ियां पैरों की
तभी बोलीं
मत कर नादानी,
मौसम से मौसम
जनम से जनम
यूं ही मैं
मिटती रही,

जिसने जैसा चाहा
वैसा ही
नचाया है मुझको,
नाम किसका लूं
यहाँ हर किसीने
सताया है मुझको,
नस-नस में मेरी
सर्वदा चिंगारी एक
घुटती रही,
बन खिलौना
इस हाथ से उस हाथ मैं
बिकती रही...

Sunday, October 30, 2011

ज़िन्दगी में कभी रोते को हंसा कर देखो

ज़िन्दगी में कभी रोते को हंसा कर देखो
अपने रूठे हुये दोस्त को मना कर देखो

फ़लसफ़ा सब ये समझ में आ जायेगा तेरे
इक मुहब्बत का दीया दिल में जगा कर देखो

इन असूलों ने तो बर्बाद किया कितनों को
है मज़ा तब, कभी गिरतों को उठा कर देखो

किस क़दर फैल गया है ये जुनूने मजहब
अपने चारो तरफ़ नज़रें तो उठा कर देखो

दूर हो जायेंगे सब फ़ासले जो तुम चाहो
ज़िन्दगी गीत है उल्फ़त का इसे गा कर देखो

कोई कितना भी हो संगदिल वो पिघल जाता है
बस ज़रा आँख से तुम आँख मिला कर देखो

कौन कहता है ख़ुदा दूर बहुत है तुमसे
पास है तेरे वो आवाज़ लगा कर देखो

हर तमन्ना तेरी हो जायेगी पूरी निर्मल
घर फ़कीरों के कभी तुम ज़रा जाकर देखो

Friday, October 28, 2011

तू सुन मेरा शिकवा गिला

कुछ नहीं सूझे ख़ुदा, तू सुन मेरा शिकवा गिला
कब तलक चलता रहेगा इन ग़मों का सिलसिला

ज़िन्दगी थक हार कर ख़ामोश है रहने लगी
सांस जाने क्यों चले, ये क्यों न रुकता क़ाफ़िला

धर पकड़ होती रही पर हाथ ना आया कभी
मन का पंछी भी ग़ज़ब है जब मिला उड़ता मिला

खुल के हंसने की तमन्ना दिल में घुटती ही रही
पर ज़माना मुझपे हरदम मुस्कुराता ही मिला

सांप चलते ही मिले हैं आस्तीनों में यहाँ
ख़ूब यारों ने दिया है इन वफ़ाओं का सिला

क्या है खोया, क्या है पाया ये समझ ना आ सका
पर जो निकला ज़िन्दगी से वो गया है दिल हिला

ना ही बरसा कोई मौसम छत पे निर्मल की कभी
ना ही चमका कोई तारा ना ही कोई गुल खिला

Sunday, October 23, 2011

हो मुबारक सबको दिन दीवाली का

आज ख़ुशियां लेके आया दिन दिवाली का
प्यार का संदेश लाया दिन दीवाली का

हो मुबारक आप सबको ये सुहाना दिन
है बहुत ही जगमगाया दिन दीवाली का

दीप जलते हर गली हर मोड़ पे अपने
हर नज़र में है समाया दिन दीवाली का

चमचमाती रोशनी ने वो समा बांधा
हर ज़ुबां ने गुनगुनाया दिन दीवाली का

भूल कर सबसे अदावत दोस्ती पालो
है यही पैग़ाम लाया दिन दीवाली का

ख़ुशनसीबी यूं तो अपनी भी नहीं कुछ कम
साथ सबके है मनाया दिन दीवाली का

Friday, October 21, 2011

दीपावली के अवसर पर एक तरही ग़जल

दीप ख़ुशियों के जल उठे हर सू
रात, दिन बन गई लगे हर सू

जगमगाने लगा शहर कुछ यूं
कि चमक ही चमक दिखे हर सू

बाद मुद्दत के हो रही हलचल
अब नगर में मेले लगे हर सू

है चमकता सितारों सा हर घर
जोत से जोत जब जगे हर सू

शोर है मच रहा पटाख़ों का
यूं नदी जोश की बहे हर सू

गुनगुनाता रहे चमन सारा
प्यार की बात ही चले हर सू

दूर दुनिया से ग़म हो जायें गर
गीत उल्फ़त का बज उठे हर सू

मुस्कुराते हुये वो आये जब
यूं लगा फूल हैं खिले हर सू

ज़िन्दगी मौज में गुज़र जाये
वो चलें साथ जो मिरे हर सू

प्यार को तेरे कोई ना समझे
तू तो निर्मल यूं ही बिके हर सू

Monday, October 17, 2011

दिन आज भी निकला है

दिन आज भी निकला है
दिन कल भी निकलेगा
उम्मीद का सूरज जाने कब
किस ओर से निकलेगा

इन्तज़ार की घड़ियां गिन
गिन नज़र गई पथराई
जिसकी ख़ातिर जीने
निकले वही नज़र न आई,
उस मंज़िल का पता न
जाने किसकी ज़ुबां से निकलेगा

भटक-भटक के दुनिया देखी
अटक-अटक चली जीवन गाड़ी
सहम-सहम के दिन हैं बीते
तड़प-तड़प के रातें काटी
चाँद ही जाने वो किस रोज़
हमारी छत पर निकलेगा

जीवन मंथन करते-करते
हम हुये थकन से चूर
यूं ही चलते-चलते हम
आ पहुँचे हैं कितनी दूर
अपने भाग्य का मोती जाने
किस गहराई से निकलेगा

कहाँ से आये किधर है जाना
नहीं पता न कोई ठिकाना
किससे हम फ़रियाद करें कि
किसे है पाना किसे है खोना
उसके घर जाने का रस्ता पता
नहीं किस तरफ़ से निकलेगा
दिन आज भी निकला है
दिन कल भी निकलेगा...

Saturday, October 15, 2011

फौजा सिंह को समर्पित

ज़िन्दगी में हर घड़ी वो दौड़ता ही जा रहा
हर किसी को आज पीछे छोड़ता ही जा रहा

दौड़ना ही ज़िन्दगी है, दौड़ना ही बन्दगी
इश्क उसको दौड़ने से, दौड़ने से हर ख़ुशी
इस डगर को उस डगर से जोड़ता ही जा रहा

नाम उसका फ़ौजियों सा,साधुओं सा भेस है
हिन्द की है शान वो तो हिन्द उसका देस है
जो बने हैं सब रिकार्ड तोड़ता ही जा रहा

सौ बरस की उम्र है पर नौजवां सा जोश है
देख उसको ये लगे है उसको पूरा होश है
हर क़दम वो रुख़ हवा का मोड़ता ही जा रहा

ना हकीमों की ज़रूरत ना दवायें ले कभी
ना ही खाये बेज़रूरत ना ही पीये मय कभी
दिल में उठते गर्व को वो फोड़ता ही जा रहा

जान फूंके सबके दिल में सबको देता है सदा
उसके जीवन से मिले है सबको जीने की अदा
रहमतों से वो ख़ुदा की दौड़ता ही जा रहा
ज़िन्दगी में हर घड़ी वो दौड़ता ही जा रहा.....

Saturday, October 8, 2011

प्यार है तो

प्यार है तो प्यार का इज़हार होना चाहिये
आशिकों में हिम्मते इक़रार होना चाहिये

प्यार करना हर किसी के बस में होता ही नहीं
आशिकी में आदमी दमदार होना चाहिये

साथ जब तक हो न कोई ज़िन्दगी क्या ज़िन्दगी
ज़िन्दगी में एक अपना यार होना चाहिये

राज़ की ये बात सुन लो कह गये आशिक़ बड़े
डूब जायें हम मगर दिल पार होना चाहिये

रोग लाईलाज है ये मानते हैं सब मगर
इस मुहब्बत में बड़ा क़िरदार होना चाहिये

है दुआ अपनी यही कि इस जहां में अब तो बस
हर किसी को हर किसी से प्यार होना चाहिये

Monday, October 3, 2011

हमसे तुम हो

मैं अगर एक
उभरता सितारा होता
तो बात कुछ और होती
लेकिन अब मैं
एक ढलता सूरज हूँ
इसलिये
बात कुछ और है,

वक़्त की अदालत ने
जो फ़ैसला दिया
उसके एवज़
बालों में चाँदी
चेहरे पे शिकन
हाथों में कमज़ोरी
और पांव में थकन मिली है,

तुम कहते हो
ये करो वो करो
ऐसे रहो वैसे रहो
इधर आओ,उधर जाओ
इसे ले जाओ,उसे ले आओ,
किससे कहूँ
मजबूरियों का तांता है
ज़ुबान पर ताला है
अपना न रहा अब कुछ
हुआ सब बेगाना है,

मगर फिर भी
ऊपरी अदालत का
फ़ैसला अभी बाक़ी है
मेरी अपील में
ये साफ़-साफ़ दर्ज है कि
तुमसे हम नहीं हैं
हमसे तुम हो,

इस निचली अदालत ने
सदा किसका साथ दिया है
कल मेरे साथ थी
आज तेरे साथ है
कल किसी और के साथ होगी
इसलिये
याद रखो कि
तुमसे हम नहीं हैं
हमसे तुम हो
हमसे तुम हो.....

Saturday, October 1, 2011

अजीब हो तुम

अजीब हो
तुम भी सनम,
जब तो आँखों में
आँसू छलकते हैं
नज़र तुम्हारी
हम पर टिकी होती है,
जब आँखों में
मस्ती के बादल लहराते हैं
नज़र तुम्हारी
कहीं और टिकी होती है,

जब होंठों पे तुम्हारे
दर्द भरी कोई
दास्तान मचलती है
उसे सुनने वाले
केवल हम होते हैं,
जब होंठों पे तुम्हारे
नशीली मदिरा छलकती है
उसे चखने वाले
कोई और होते हैं,

जब दिल कभी तुम्हारा
उदासियों की अनगिनत
तहों के नीचे दबा होता है
उसे वहाँ से निकालने वाले भी
हम ही होते हैं,
पर जब कभी दिल तुम्हारा
आस्मान की बुलन्दियां
छू रहा होता है
उसे वहाँ से लपकने वाले
कोई और होते हैं,

अजीब हो
तुम भी सनम,
काश कि कुछ तो समझते
कुछ तो जानते,
अब
समुन्दर कैसे बताये तुम्हें
कि उसके भीतर क्या-क्या छुपा है
परबत कैसे बताये तुम्हें
कि उसके अन्दर कैसा-कैसा
लावा दबा है
अजीब हो
तुम भी सनम.....

Friday, September 23, 2011

न जाने क्यों

न जाने क्यों
आज भी
उम्र के इस मुक़ाम पर
उसके होने का अहसास
मन से बिसरा नहीं है,
वो सुगंधित पल
जब उसका हाथ
मेरे हाथ में था
आज भी
मेरे अंदर जीवित हैं,
हालाँकि
हाथ बहुत पहले ही
छूट गया था
वक़्त बहुत पहले ही
रूठ गया था,
मगर
उस पकड़ का
नर्म अहसास
आज भी
मेरी उंगलियों की
हरकत में है
मेरे लहू की रफ़्तार
मेरे दिल की धड़कन में है,
न जाने क्यों
भूलना चाहते हुये भी
कुछ नहीं भूल पाया मैं
छोड़ना चाहते हुये भी
कुछ नहीं छोड़ पाया मैं
न जाने क्यों
न जाने क्यों...

Saturday, September 17, 2011

जंगल का क़ानून

विश्व बना इक गहरा बन
जंगल का क़ानून दना दन,
जगा-जगा हैं दाँव पैंतरे
गोला बारूद चले ठना ठन,

नदियों में तेज़ाब बहे है
सागर हो गये सब ज़हरीले
हवा भी सारी भ्रष्ट हो गई
बादल बरसे काले पीले,
खद्दर-टोपी जूझ रहे हैं
स्वीस बैंक हैं भरे खना-खन,

ताड़ के मौक़ा झपट हैं लेते
हक़ दूजे का हड़प हैं लेते
गिद्ध बने अब देश के रक्षक
मज़े से देश को लपक हैं लेते,
हाथ में गर्दन जब आये तो
रेतें छूरी छन छना-छन,

ख़ून का दौरा सही चले ना
नब्ज़ डूब गई रिश्तों की
दिल की धड़कन धन-धन करती
लाश बिके चाहे अपनों की,
घर-घर में जंगल फैल गया अब
कहीं मिले ना अपना-पन,

कौन किसे कब ज़िन्दा निग़ले
कौन किसे कब मुर्दा खाये
भाग सके तो भाग ले भाई
जान बची तो लाखों पाये,
क़ानून की बोली पांव के नीचे
कोई सुने ना सन सना-सन...

Monday, August 15, 2011

चलो कि वहाँ

चलो कि
वहाँ जहाँ
असीमित हो जहां,
धरती का कोई
किनारा न हो
आकाश भी अनंत हो
बेअंत हो,
कहीं कोई सीमा नहीं
सोच पर कोई
बंधन नहीं,
सपनों पर कोई
पहरे नहीं
मरने-जीने की कोई
सौगन्ध नहीं,
जिस्मो रूह आज़ाद हों
हम-तुम नाशाद हों,
दुनिया की
भाग-दौड़ से परे
उम्र की हदों से दूर
दिलों के आईने में
रहें झांकते
हो न मजबूर,

वहाँ जहाँ
रिश्तॊं का शोर नहीं
एक का दूजे पे ज़ोर नहीं,
हो तो फ़कत
बहते पानी सा
आज़ादाना बहाव
हो तो केवल
वायु सा
अपरिमित फैलाव,
प्रकाश का एक
लघु बिम्ब
तब बने एक
विशाल प्रकाश-पुंज,
समो जायें
एक दूसरे में
कुछ इस क़दर कि
न रहे भेदभाव
न कोई अभाव
न अधिक झुकाव
न कोई गहरा लगाव
आओ कि चले
हम-तुम वहाँ...

Friday, August 12, 2011

कहानियाँ

कहानियाँ
आती कहीं से हैं
तो कहानियाँ
जाती कहीं पे हैं,
कहानियाँ
गढ़ी जाती हैं
न जाने कहाँ
कहानियाँ
मगर
पढ़ी जाती हैं यहाँ,

कहानियाँ
बनती तो हैं
बहुतों की
कहानियाँ
पर बिगड़ती भी हैं
बहुतों की,
कहानियाँ
कभी सुन्दर
मनचाही व दीवानी सी
कहानियाँ
कभी उबाऊ
नीरस औ बेमानी सी,

कहानियाँ
रचता है
जो कोई भी
कहानियाँ
कभी सुनता न
वो कोई भी,
कहानियाँ
सांसों की
रफ़्तार है कि
कहानियाँ
रेखाओं का
चमत्कार है,

कहानियाँ
भावनाओं के
वलवले हैं कि
कहानियाँ
क्रोध औ नफ़रत के
ज़लज़ले हैं,
कहानियाँ
शारीरिक परिश्रम
के नतीजे हैं कि
कहानियाँ
बस रूहानी
अजूबे हैं,

कहानियाँ तो
बस अनबूझ
पहेली होती हैं
कहानियाँ तो
अनदेखी पर
अलबेली होती हैं,
कहानियाँ
यूं ही उतरती
रहेंगी जब तक
कहानियाँ किताबों में
यूं ही सिमटती
रहेंगी तब तक...

Friday, August 5, 2011

पंछी (आत्मा)

मुक्त गगन की
उड़ान को
निहारता पंछी
पराधीनता को
हर घड़ी
नकारता पंछी,
समय को प्रयास
कर पीछे
धकेलता पंछी
आस्तित्व को अपने
निखारता पंछी,

बहुत ही बेसब्र
अब तो
हो चुका है वो
इंतज़ार में पड़ा
बेरंग हो
चुका है वो,
सहनशीलता से
अब न कोई
वास्ता रहा
प्यास जन्मों की लिये
ख़ुश्क हो
चुका है वो,
कड़ी धूप में
देर से नीर को
तलाशता पंछी...

बेचैनियों का
सिलसिला
वो बन गया
ख़्वाहिशों की
सूखी डाल पर ही
तन गया,
तप्त देह में समेटे
जग क्र सारे
ज़लज़ले
मौसमों की मार का
प्रमाण एक
बन गया,
पथ की दुर्लभता
को तक विह्वल हो
पुकारता पंछी...

मन मेरा तो चाहता
मदद उसकी
करूं मैं
तोड़ बेड़ियां समस्त
संग उसके ही
चलूं मैं,
देह-रस गर मेरा
छूट जाये देह से
कहीं
नाम-रस फिर सदा
उसके होंठों पर
धरूं मैं,
बात मेरी जब है सुनता
परों को
संवारता पंछी
मुक्त गगन की
उड़ान को
निहारता पंछी...

Saturday, July 30, 2011

किस मिट्टी के बने हो

उसने पूछा
किस मिट्टी के बने हो,
दिल पत्थर का है
या कि
चिकने घड़े हो?
गर्म-तेज़ हवाओं से
आप घबराते नहीं
कड़वी-तीखी बातों से
कभी तिलमिलाते नहीं,
वक़्त की चोटों से घाव
आपको लगते नहीं
जानलेवा हमलों से भी
हौसले कभी खोते नहीं,
सच-सच बतायें कि
माजरा क्या है
ये सब आख़िर
कहाँ से मिला है?

हमने कहा
ऐसा नहीं है,
ऐसा नहीं है कि
दुख के बादल
कभी मंडराते ही नहीं
ऐसा नहीं है कि
ग़म कभी आते ही नहीं,
हाँ,
ये अलग बात है कि
कुछ को हम
फ़लांग जाते हैं
कुछ को हम
रौंद जाते हैं,
कुछ को हम
निग़ल जाते हैं
तो कुछ को हम
काट जाते हैं,
फिर भी,
कुछ होते हैं जो
चिपके रहते हैं
बहुत देर तक
चुभते रहते हैं वो
दिल में अपने
हर घड़ी हर पल,
क्या करें
दिल की मिट्टी से
बनी है काया अपनी
यही दौलत तो
यही है माया अपनी,
दर्द सींचते हैं हमको
ज़ख़्म पालते हैं हमको,
ये ज़िन्दगी के ज़लज़ले ही
इस क़दर ढालते हैं हमको,
वो कहते हैं न,
जल की गहराई से
जो डरता है
वो रोज़-रोज़ डूबता है
वो रोज़-रोज़ मरता है
वो रोज़-रोज़ मरता है...

Sunday, July 3, 2011

दुनिया इक जमघट है

दुनिया इक जमघट है,रिश्तों की दलदल है
जीवन हर उलझन है,आपस की छलबल है

सपनों के मरघट हैं,ऐसा ये जंगल है
भागमभाग है हर सू,पल पल की दंगल है

निद्रा को तरसे है,हरदम मन भटके है
सांसों की डोरी में, कोई ना कस बल है

माना उसकी राहें,सीधी औ सच्ची है
जायेंगे पर कैसे, दिल में ना हलचल है

जब तक नैना चमके,जब तक दिल है धड़के
तब तक सब है वर्ना,माटी में घुलमिल है

Wednesday, June 29, 2011

तुम मिले जो मुझे

तुम मिले जो मुझे,बात बनने लगी
ज़िन्दगी को नई राह दिखने लगी

थी न रौनक ज़रा सी चमन में कहीं
अब तो फूलों की बरसात होने लगी

जो जगह थी अंधेरों में डूबी हुई
वो तेरी चाँदनी से चमकने लगी

सूझता कुछ नहीं था लबों को जहाँ
उन पे गीतों की सरगम मचलने लगी

रंग तस्वीर के सब थे फीके हुये
फिर से जीवन की बगिया महकने लगी

तुमसे रोशन है निर्मल के दिल का जहां
प्यार की इक शमा उस में जगने लगी

Saturday, June 18, 2011

तुम जो होते

साथ मेरे तुम जो होते ज़िन्दगी फिर मुस्कुराती
नाचते फिर हर घड़ी हम हर तमन्ना खिलखिलाती

धड़कनें मदहोश होतीं चाहतें पुरजोश होतीं
आस्मानों पर हमारे कहकशां ही जगमगाती

गीत दिल की वादियों में गूंजते पल-पल नये फिर
संग भंवरे के कली मिल गीत हरदम गुनगुनाती

थे ज़रूरत तुम सफ़र की और ना कुछ चाहिये था
हाथ में जो हाथ होता फिर तो मंज़िल मिल ही जाती

खो गये पर तुम न जाने वक़्त की किन ग़र्दिशों में
याद निर्मल को तुम्हारी रोज़ोशब अब है सताती

Wednesday, June 15, 2011

दिन गुजरते हैं

दिन गुज़रते हैं हवाओं की तरह
लोग मिलते हैं घटाओं की तरह

फूल कागज़ का बनी ये ज़िन्दगी
दिल हैं जलते अब चिताओं की तरह

मुश्किलों ने है जो चेहरे पे जड़ा
दिख रहा है वो सज़ाओं की तरह

है नज़र ख़ामोश दिल को होश ना
ज़िन्दगी है चुप ख़लाओं की तरह

किससे बोलें किससे निस्बत हम करें
काश,हो कोई दवाओं की तरह

गर ज़रूरत ही नहीं निर्मल तेरी
क्यों हो चिपके तुम बलाओं की तरह

Monday, June 13, 2011

गुजर गये इस जहां से

गुज़र गये इस जहां से हम तो जहां ये फिर भी चला करेगा
कभी न रुकता, कभी न थमता वक़्त का दरिया बहा करेगा

ले सांस में सांस जो हैं कहते, संग जियेंगे संग मरेंगे
हुआ कभी ना किसी जनम जो,वो कल भी ना हुआ करेगा

रिश्तों का ब्योपार बना जग,कभी मुनाफ़ा कभी है घाटा
ख़ुदा ही जाने ख़ुदा ही समझे ऐसा कब तक चला करेगा

प्यार मुहब्बत हुये अनोखे,कहीं वफ़ा तो कहीं हैं धोके
नये वक़्त में प्यार की ख़ातिर अब न कोई मिटा करेगा

कोई किसी के संग मरे ना,मरे तो निर्मल आप मरे बस
किया बुरा है जहां में जिसने वही तो आख़िर भरा करेगा

अपना प्यारा जहां

कहाँ और कैसे
मिला था तुझे
ये भण्डार
जिसे तू
बांटता रहा
पल-पल
फिर भी
जो अब तक
कभी ख़त्म
न हो सका,
किस मोड़ पे
दबा पाया था
तूने ये ख़ज़ाना
जिसे तू
दिल खोल कर
लुटाता रहा हरदम
फिर भी जो अब तक
ज़रा
कम न हो सका,
क्योंकर
चला था तू उधर
कैसे
पहुँचा था तू वहाँ?
कैसा था वो नगर
कैसा था वो जहां?
हो सके तो
कर ज़रा
मुझे भी इशारा
दे सके तो दे
मुझे भी उस
नगर का ठिकाना
ताकि आ सकूँ
मैं भी वहाँ
और पा सकूँ
मैं भी वहाँ
सदियों से बिछ्ड़ा
अपना प्यारा जहां
अपना
प्यारा जहां...

Wednesday, April 27, 2011

नूर-नूर कर दे

किसी
दरवाज़े से
किसी
खिड़की से
किसी
झरोखे से,
बख़्श दे
वो रोशनी
जो
मेरे मन को
नूर-नूर
कर दे,
ज़िन्दगी में
जो मेरी
नया
दस्तूर भर दे,
कि न रहे
फिर कमी कोई
हर सांस मेरी
तू अगर
इस क़दर
मख्मूर कर दे,

Tuesday, April 19, 2011

दोस्ती

दोस्ती गीत है गुनगुनाने के लिये
दोस्ती ग़ज़ल है इक सुनाने के लिये
ये वो अज़ीम शय है ख़ुदा की जिसे
हौसला और क़िरदार चाहिये निभाने के लिये,

लबों का तबस्सुम है ये, दिलों का सुकून है ये
जज़्बों का लेन-देन तो मुहब्बत का मजमून है ये
कि दोस्ती होती नहीं महज़ वक़्त बिताने के लिये

दोस्त गर साथ है तो डर नहीं तल्ख़ हवाओं का
ग़म नहीं ज़रा भी होता गहरी काली घटाओं का
हर कोशिश कीजिये इक अच्छा दोस्त बनाने के लिये

दोस्त की बातों से हर मौसम ख़ुशगवार हो जाता
सहरा में भी साथ उसके जश्ने-बहार हो जाता
कि दोस्त होते ही हैं इक दूजे पे मिट जाने के लिये

मगर ये वो फूल है जो हर शाख़ पे खिलता नहीं
मिल तो जाते हैं बहुत पर दोस्त कभी मिलता नहीं
ख़ूने जिगर चाहिये, ये ख़ुशबूये रूह पाने के लिये

Sunday, April 17, 2011

दोपहर गर्मी की

दोपहर गर्मी की ये सुनसान सी वीरान सी है
चिलचिलाती धूप ये पिघले हुये अरमान सी है

चल पड़ी लू हर तरफ़ बेनूर शक़्लें हो चलीं सब
दूर तक ख़ामोशियां हैं फिर ये क्यों नादान सी है

किस तरह मौसम ने बदली चाल अपनी ये न पूछो
सर्द झोंकों की तमन्ना हो गई बेजान सी है

तप रहे हम इस तरह कि अब ना कोई आरज़ू है
बिन तेरे ये ज़िन्दगी बेकार इक सामान सी है

प्यास होंठों की बुझे ना दिल में हलचल हर घड़ी है
ले चलो मुझको कहीं अब ये जगह अन्जान सी है

ये तो चलते ही रहेंगे सिलसिले रंजो अलम के
ग़म न कर निर्मल कि ये कुछ देर के मेहमान सी है

Saturday, March 26, 2011

कभी हो सके तो

कभी हो सके तो
आ मेरी तरफ़
भर नज़र कभी
देख मेरी तरफ़,
ये हालत
किसने बनाई है
ये चोट किसने
लगाई है,
राहे ज़िन्दगी
क्यों सितमगरों की
बन आई है,
लेकिन,
तुझे क्या
तू तो हरदम
रहता है दूसरी तरफ़,
कभी मेरी तरफ़
होता
तो समझ पाता,
कि होता है क्या
अभाव में जीना
व्यथा में पिसना
हर पल का रिसना
घड़ी-घड़ी का तड़पना
लंगड़ी ज़िन्दगी का ढोना
और
सदियों तक का रोना,
और
कैसा लगता है तब
जब
समन्दर में रह के
प्यासे रह जाना
सामने पड़ी चीज़ों को
ललचाई नज़रों से
बस देखते जाना,
कैसा लगता है तब
जब
अपनी ही दास्तान में
खलनायक बन के
रह जाना
और
हर उम्मीद का
आसुओं के
सैलाब में
बह जाना,
कैसा लगता है तब ?
लेकिन तुझे क्या
तू तो हरदम
रहता है
दूसरी तरफ़
कभी मेरी तरफ़ आये
तो ही तू
समझ पाये
कि होता है क्या
पल-पल का तड़पना
पल-पल का तड़पना
पल-पल का तड़पना...

Wednesday, February 2, 2011

तेरे आने से

हुआ ग़ुलज़ार है दिल का चमन ये तेरे आने से
ख़ुशी से झूमते धरती गगन ये तेरे आने से

मुझे लगता तेरा मुझसे कोई नाता पुराना है
नहीं तो दिल है क्यों इतना मगन ये तेरे आने से

बहारें मुस्कुराती हैं ये कलियां गीत गाती हैं
कि ख़ुशबू से भरी फिरती पवन ये तेरे आने से

कभी मैंने न सोचा था कि ऐसे दिन भी आयेंगे
कि जज़बातों की भड़केगी अगन ये तेरे आने से

मेरे ख़्वाबों में अब तो हर घड़ी चेहरा तुम्हारा है
हुआ ग़ायब मेरा चैनो-अमन ये तेरे आने से

तेरा दर छोड़ कर मुझको कहीं अब और न जाना
कि बदला है ख़्यालों का चलन ये तेरे आने से

वो कहने को तो कहते हैं हुआ निर्मल दीवाना है
वो क्या जाने लगी कैसी लगन ये तेरे आने से

Friday, January 14, 2011

दिल की सरगम

करूं किस पे आज यकीं बता, तेरी बात पर तेरी चाल पर
मुझे और अब न सता कि तू, मुझे छोड़ दे मेरे हाल पर

मुझे तूने सबसे जुदा किया, कहाँ लाके मुझको खड़ा किया
न ये ज़िन्दगी रही ज़िन्दगी, कभी पात पर कभी डाल पर

जो फ़िसल गया मेरे हाथ से, वही याद है मुझे आज तक
मेरे दिल की सरगम बज रही, उसी गीत पर उसी ताल पर

तुझे देखना मेरा शौक़ था, तुझे चाहना मेरी आरज़ू
यही आस अब तक है जवां,मेरे दिल के ख़वाबो-ख़्याल पर

मुझे कर अता कोई रास्ता, जुड़े प्यार से नया वास्ता
यही इल्तजा निर्मल करे, हो ख़फ़ा न मेरे सवाल पर