कहाँ और कैसे
मिला था तुझे
ये भण्डार
जिसे तू
बांटता रहा
पल-पल
फिर भी
जो अब तक
कभी ख़त्म
न हो सका,
किस मोड़ पे
दबा पाया था
तूने ये ख़ज़ाना
जिसे तू
दिल खोल कर
लुटाता रहा हरदम
फिर भी जो अब तक
ज़रा
कम न हो सका,
क्योंकर
चला था तू उधर
कैसे
पहुँचा था तू वहाँ?
कैसा था वो नगर
कैसा था वो जहां?
हो सके तो
कर ज़रा
मुझे भी इशारा
दे सके तो दे
मुझे भी उस
नगर का ठिकाना
ताकि आ सकूँ
मैं भी वहाँ
और पा सकूँ
मैं भी वहाँ
सदियों से बिछ्ड़ा
अपना प्यारा जहां
अपना
प्यारा जहां...
Monday, June 13, 2011
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