Friday, August 28, 2009

हम जीतेंगे

(भारत की आर्थिक क्रांति को समर्पित)

हम जीतेंगे, हम जीतेंगे
हम जीतेंगे, हम जीतेंगे,

चाहे कितनी दूर हो मंज़िल
चाहे कितनी दूर हो साहिल
चाहे कैसी भी हो ग़र्दिश
चाहे कैसी भी हो मुश्किल
हम न ज़रा भी घबरायेंगे
तूफ़ानों से जा टकरायेंगे
सब लोग देखते रह जायेंगे
हर तरफ़ हमीं हम छा जायेंगे

क़श्ती पार लगा ही देंगे
दुनिया सारी हम जीतेंगे
हम जीतेंगे..

रोज़ नया इतिहास रचेंगे
नये-नये अध्याय लिखेंगे
अभिलाषा के फूल खिलेंगे
कल के सपने आज मिलेंगे
बीते क़िस्से बिसर जायेंगे
रंग उम्मीदों के चमक जायेंगे
अब होंगे पूरे ख़्वाब हमारे
खोये किनारे मिल जायेंगे

स्वर्ग भूमि पर ला छोड़ेंगे
हारी बाज़ी अब जीतेंगे
हम जीतेंगे...

छोड़ दे दुनिया हम से जलना
सीख ले साथ हमारे चलना
चढ़ते सूरज ने न रुकना
ऐसा मौक़ा फिर न मिलना
इक दिन ऐसा भी आयेगा
हर कोई हम पे इतरायेगा
दूर खड़ा जो शर्मायेगा
मन को हमारे न भायेगा

हक़ न पराया हम छीनेंगे
प्यार से सबको हम जीतेंगे
हम जीतेंगे...

दूर हो धर्म-अधर्म का झगड़ा
दूर हो ज़ाति-कुज़ाति का झगड़ा
घिरे कहीं न युद्ध के बादल
लगे कहीं न क़ुदरत का रगड़ा
समय की धारा पलट ही देंगे
दिशा दौड़ की उलट ही देंगे
नहीं चाहिये भीख दया की
अपनी मुश्किल सलट ही लेंगे

दौर नया हम ला ही देंगे
नवयुग में सब हम जीतेंगे
हम जीतेंगे हम जीतेंगे
हम जीतेंगे हम जीतेंगे...

Tuesday, August 11, 2009

सो गये हो कहाँ

जागो कि तुम सो गये हो कहाँ
मालिक मेरे, खो गये हो कहाँ

ऐसी भी क्या रंजिशें हैं तुम्हें
नज़रों से ग़ुम हो गये हो कहाँ

ढूँढा यहाँ से वहाँ तक तुम्हें
घर में नहीं तो गये हो कहाँ

आवाज़ देता तुझे दिल मेरा
तुम तोड़ दिल को गये हो कहाँ

तुमने सुनी क्या नहीं वो सदा
देता जो दिल सो गये हो कहाँ

पल-पल समय है पुकारे तुझे
आओ कि अब खो गये हो कहाँ

युं मुश्किलें क्यों बढ़ाते मेरी
मुझको जगा, सो गये हो कहाँ

Sunday, August 2, 2009

सुख-दुख

मौसम बरसे उपवन में
सुख-दुख बरसे जीवन में
क़ुदरत का ये खेल है सब
क्यों डूबे हम उलझन में
सुख-दुख बरसे.....

चारो ओर हैं फैले अपने
सुख-दुख के ही गीत
दुख की चर्चा होती लेकिन
सुख न किसी का मीत

कहीं सुखों का ढेर, कहीं
दुख ही मन के आंगन में
सुख-दुख बरसे.....

आस-निराश की बांह पकड़
ये जीवन चलता जाये
धूप-छांव के दो रंगों में
पल-पल रंगता जाये

ऊंची-नीची लहरें सब
दर्द उठाये तन-मन में
सुख-दुख बरसे.....

समय ने पैरों से है बांधी
सुख-दुख की पाज़ेब
दुख से फिर घबराना हमको
दे न ज़रा भी ज़ेब

क्षणभंगुर से इस जीवन में
सुख भी होता बंधन में
सुख-दुख बरसे.....

मान लिया कि जग में होती
चन्द ग़मों की मार बुरी
याद हमें वो जब हैं आते
दिल पे चलती एक छुरी

ऐसा न कोई है जिसके
केवल सुख हो दामन में
सुख-दुख बरसे जीवन में