ये सुना है, इक दिवानी है अभी तक गांव में
जो मुझे ही याद करती है अभी तक गांव में
हम जहाँ मिलते रहे थे शाम के साये तले
वो सुहानी शाम ढलती है अभी तक गांव में
सात सागर पार करके दूर तो हम आ गये
पर हमारी जान अटकी है अभी तक गांव में
यूं बदल तो सब गया है अब वहाँ फिर भी मगर
इक पुराना पेड़ बाकी है अभी तक गांव में
चैन मिलता है वहाँ आराम मिलता है वहाँ
हर ख़ुशी की राह मिलती है अभी तक गांव में
ज़िन्दगी रफ़्तार से चलने लगी है हर तरफ़
फिर भी देखो आस बसती है अभी तक गांव में
बिन हमारे शायरी ग़मगीन है रहने लगी
याद अपनी सबको आती है अभी तक गांव में
वो बिचारा तो जहां की भीड़ में है खो गया
कोई निर्मल को बुलाती है अभी तक गांव में
Tuesday, January 24, 2012
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