Friday, January 25, 2013

२६ जनवरी

 

हर बरस की तरह
लो फिर आ गई
२६ जनवरी,
भारत की शानो-शौकत
ख़ुशहाली व तरक्क़ी के
बिगुल बजाती
लो फिर आ गई
२६ जनवरी,
 
आधी सदी से भी अधिक
चल चुकी ये
उन्नति के कितने ही शिखर
छू चुकी ये
ज्ञान-विज्ञान के अनेकों
समन्दर तर चुकी ये
गीत संगीत कला के अनगिनत
जौहर दिखा चुकी ये,
विश्व रंगमंच पर दुल्हन सी सजी
ख़ुशियों को दर्शाती
लो फिर आ गई
२६ जनवरी,
 
देशभक्तों की आत्मायें
हैं इसमें बसीं
शहीदों के हॄदय की धड़कनें
है इसमें रचीं
जवानों के लहू से है इसकी
रंगत बनी
संविधान के हर शब्द से है
इसकी सूरत सजी,
आज़ादी की मोहक मधुर
धुन गुनगुनाती
लो फिर आ गई
२६ जनवरी,
 
मगर
इसके साये तले
औरत की अस्मत
सुरक्षित कहाँ है?
गर्भ से लेकर उम्र के
हर हिस्से तक
नारी का दुश्मन यहाँ है,
ज़रा ग़ौर से देखो अगर
नशों में धुत
देश का हर नौजवां है,
क्या बनेगा किसी का
भ्रष्ट दुराचारी नेता
आदमख़ोर दरिन्दे
अनुशासन विहीन
व्यवस्था जहाँ है,
रिश्वत के पैरों पे चल
व्यभिचार का पहन के मुकुट
बेशर्मों सी हंसती-हंसाती
लो फिर आ गई
२६ जनवरी