कभी कच्चे रिश्तों की दहलीज़ पे सर झुकाया नहीं करते
बेजान हों जो बुनियादें उन पे कभी घर बसाया नहीं करते
अगर हौसला ही नहीं तड़पने का जिगर में ज़रा भी तो
मुहब्बत की दुनिया में इक क़दम भी फिर बढ़ाया नहीं करते
वो जिनके दिलों में नहीं, तेरे जज़बाते दिल की कोई जगह
यूं बेवजह फिर उन पे अपनी मुहब्बत लुटाया नहीं करते
पिघलने लगे आपके जिस्मों जां भी अगर गर्मिये ग़म से
तो शिद्दत से उतनी, कभी दिल किसी का जलाया नहीं करते
कभी जो किसी ने बख़्शें हों वफ़ा के महकते हुये फूल
वो ख़ुशबू दिले बेरहम से किसी दम मिटाया नहीं करते
हुआ बेख़बर आज निर्मल, उसे जब ये अहसास हो गया कि
मुहब्बत को अपनी, कभी नज़रों से यूं गिराया नहीं करते
Tuesday, July 28, 2009
Sunday, July 19, 2009
ज़िन्दगी को बहुत ही सहारा होता
ज़िन्दगी को बहुत ही सहारा होता
दोस्त मेरे, तू जो गर हमारा होता
हर तरफ़ फूल ही फूल बिखरे होते
हर तरफ़ ख़ूबसूरत नज़ारा होता
ये वक्त बेवफ़ाई न करता अगर
साथ हमने ये जीवन गुज़ारा होता
आरज़ू की शमा बुझ न जाती युं ही
चमकता मुक़द्दर का सितारा होता
रहते आबाद मेरे दोनों ही जहां
जो तेरी इक नज़र का इशारा होता
साथ तेरा नहीं छोड़ते हम कभी
गर तेरी बेरुख़ी ने न मारा होता
सोचते-सोचते आ गया दूर मैं
काश, तूने मुझे फिर पुकारा होता
तुमने छोड़ा जहाँ, मैं खड़ा हूँ वहीं
तूने मुड़ कर, देखा तो दोबारा होता
डगमगाती न ये कश्तिये ज़िन्दगी
मिल गया मेरे दिल को किनारा होता
जीत कर, हार जाते न हम इस तरह
खेल अपने इश्क़ का न सारा होता
दोस्त मेरे, तू जो गर हमारा होता
हर तरफ़ फूल ही फूल बिखरे होते
हर तरफ़ ख़ूबसूरत नज़ारा होता
ये वक्त बेवफ़ाई न करता अगर
साथ हमने ये जीवन गुज़ारा होता
आरज़ू की शमा बुझ न जाती युं ही
चमकता मुक़द्दर का सितारा होता
रहते आबाद मेरे दोनों ही जहां
जो तेरी इक नज़र का इशारा होता
साथ तेरा नहीं छोड़ते हम कभी
गर तेरी बेरुख़ी ने न मारा होता
सोचते-सोचते आ गया दूर मैं
काश, तूने मुझे फिर पुकारा होता
तुमने छोड़ा जहाँ, मैं खड़ा हूँ वहीं
तूने मुड़ कर, देखा तो दोबारा होता
डगमगाती न ये कश्तिये ज़िन्दगी
मिल गया मेरे दिल को किनारा होता
जीत कर, हार जाते न हम इस तरह
खेल अपने इश्क़ का न सारा होता
Tuesday, July 14, 2009
कोई नाराज़ है हमसे
कोई नाराज़ है हमसे कि हम कुछ लिखते नहीं
कहाँ से लायें हम अल्फ़ाज़, जब वो मिलते नहीं
दर्द की गर ज़ुबां होती तो देते हम उनको बता
बतायें हम मगर कैसे, ज़ख़्म जो दिखते नहीं
जो पी सकते तो पी जाते, पिघलते इस ग़म को हम
कोशिश तो की बहुत हमने, अश्क़ पर छुपते नहीं
शिकायत तो वो करते हैं, ये हक़ है उनको मगर
गिला जो हमको उनसे है, उसको वो सुनते नहीं
कभी जब याद आता है वो गुज़रा मौसम हमें
तो दिल की वादियों में ज़लज़ले फिर रुकते नहीं
बहुत आसान है इल्ज़ाम औरों के सर देना
इश्क़ में सिलसिले नाराज़गी के चलते नहीं
कहाँ से लायें हम अल्फ़ाज़, जब वो मिलते नहीं
दर्द की गर ज़ुबां होती तो देते हम उनको बता
बतायें हम मगर कैसे, ज़ख़्म जो दिखते नहीं
जो पी सकते तो पी जाते, पिघलते इस ग़म को हम
कोशिश तो की बहुत हमने, अश्क़ पर छुपते नहीं
शिकायत तो वो करते हैं, ये हक़ है उनको मगर
गिला जो हमको उनसे है, उसको वो सुनते नहीं
कभी जब याद आता है वो गुज़रा मौसम हमें
तो दिल की वादियों में ज़लज़ले फिर रुकते नहीं
बहुत आसान है इल्ज़ाम औरों के सर देना
इश्क़ में सिलसिले नाराज़गी के चलते नहीं
Sunday, July 12, 2009
ज़िन्दगी इम्तिहान है
ज़िन्दगी इम्तिहान है यारा
फ़लसफ़ों की दुकान है यारा
चाहे कुछ भी ख़रीद कर देखें
ज़ख़्मों के सब निशान है यारा
चुभते हैं हर घड़ी ये रिश्ते बन
दाग़ ये बेज़ुबान है यारा
बातें इसकी अजीब होती है
बस ये कड़वी ज़ुबान है यारा
लोग मिलते बिछड़ते जाते हैं
आते-जाते तुफ़ान है यारा
दिल से जो निकले ठीक होता है
रूह की, दिल ज़ुबान है यारा
हर क़दम हार-जीत होती है
जाने कैसी ये शान है यारा
पांव नीचे ज़मीं तो है, फिर भी
हाथ में आसमान है यारा
पा के खोते कि खो के पाते हैं
कर्मों की आन-बान है यारा
हैं यहाँ अब, तो कल कहाँ होंगे
बदलते आशियान है यारा
करते हो नाज़ इस जिस्म पे तुम
ये तो कच्चा मकान है यारा
पूछना है बेकार निर्मल से
वो, गई दास्तान है यारा
फ़लसफ़ों की दुकान है यारा
चाहे कुछ भी ख़रीद कर देखें
ज़ख़्मों के सब निशान है यारा
चुभते हैं हर घड़ी ये रिश्ते बन
दाग़ ये बेज़ुबान है यारा
बातें इसकी अजीब होती है
बस ये कड़वी ज़ुबान है यारा
लोग मिलते बिछड़ते जाते हैं
आते-जाते तुफ़ान है यारा
दिल से जो निकले ठीक होता है
रूह की, दिल ज़ुबान है यारा
हर क़दम हार-जीत होती है
जाने कैसी ये शान है यारा
पांव नीचे ज़मीं तो है, फिर भी
हाथ में आसमान है यारा
पा के खोते कि खो के पाते हैं
कर्मों की आन-बान है यारा
हैं यहाँ अब, तो कल कहाँ होंगे
बदलते आशियान है यारा
करते हो नाज़ इस जिस्म पे तुम
ये तो कच्चा मकान है यारा
पूछना है बेकार निर्मल से
वो, गई दास्तान है यारा
Tuesday, July 7, 2009
दामन में कभी
दामन में कभी फूल कभी ख़ार सजा लेता हूँ
राह में जो मिल जाये, हमराह बना लेता हूँ
चलना फ़ितरत है मेरी, दिन हो कि शब गहरी
सूरज जो साथ न हो, दीपक मैं जला लेता हूँ
खोया जो कहीं कुछ, ग़म उसका पाला नहीं मैंने
मिल जायें जो ख़ुशियाँ, मैं उनको मना लेता हूँ
रहता नहीं क़ाबू में जब, दर्दे दिल ये मेरा
अपनी आँखों में तब, सावन को बुला लेता हूँ
बेकल है आदम की बस्ती का अब हर कोना
कुदरत से तेरी अय रब, लौ मैं लगा लेता हूँ
मुझको मिलता नहीं जब, दोस्त कोई दुनिया में
हाले-दिल अपना, मैं निर्मल को सुना लेता हूँ
राह में जो मिल जाये, हमराह बना लेता हूँ
चलना फ़ितरत है मेरी, दिन हो कि शब गहरी
सूरज जो साथ न हो, दीपक मैं जला लेता हूँ
खोया जो कहीं कुछ, ग़म उसका पाला नहीं मैंने
मिल जायें जो ख़ुशियाँ, मैं उनको मना लेता हूँ
रहता नहीं क़ाबू में जब, दर्दे दिल ये मेरा
अपनी आँखों में तब, सावन को बुला लेता हूँ
बेकल है आदम की बस्ती का अब हर कोना
कुदरत से तेरी अय रब, लौ मैं लगा लेता हूँ
मुझको मिलता नहीं जब, दोस्त कोई दुनिया में
हाले-दिल अपना, मैं निर्मल को सुना लेता हूँ
Sunday, July 5, 2009
जाने किन बातों की
जाने किन बातों की वो मुझको सज़ा देता है
जब भी मिलता है कभी, इक दर्द जगा देता है
दिल में उठती हैं जो लपटें, सहना है मुश्किल
जो भी देता है, वो शोलों को हवा देता है
ऐसी दुनिया में इतबारे मुहब्ब्त कैसे हो
अपने दिल को जहाँ, अपना दिल ही दग़ा देता है
दिल के दुश्मन को पहचाने तो कैसे आख़िर
अपनी हस्ती वो, सौ पर्दों में छुपा देता है
लड़ना बाहर से तो मुमकिन है क्या करें उसका
घर के अंदर से जो अंदर का पता देता है
जितना जी चाहे तू कर, दिले निर्मल पे सितम
कुछ भी हो जाये पर, दिल है कि दुआ देता है
जब भी मिलता है कभी, इक दर्द जगा देता है
दिल में उठती हैं जो लपटें, सहना है मुश्किल
जो भी देता है, वो शोलों को हवा देता है
ऐसी दुनिया में इतबारे मुहब्ब्त कैसे हो
अपने दिल को जहाँ, अपना दिल ही दग़ा देता है
दिल के दुश्मन को पहचाने तो कैसे आख़िर
अपनी हस्ती वो, सौ पर्दों में छुपा देता है
लड़ना बाहर से तो मुमकिन है क्या करें उसका
घर के अंदर से जो अंदर का पता देता है
जितना जी चाहे तू कर, दिले निर्मल पे सितम
कुछ भी हो जाये पर, दिल है कि दुआ देता है
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