कभी कच्चे रिश्तों की दहलीज़ पे सर झुकाया नहीं करते
बेजान हों जो बुनियादें उन पे कभी घर बसाया नहीं करते
अगर हौसला ही नहीं तड़पने का जिगर में ज़रा भी तो
मुहब्बत की दुनिया में इक क़दम भी फिर बढ़ाया नहीं करते
वो जिनके दिलों में नहीं, तेरे जज़बाते दिल की कोई जगह
यूं बेवजह फिर उन पे अपनी मुहब्बत लुटाया नहीं करते
पिघलने लगे आपके जिस्मों जां भी अगर गर्मिये ग़म से
तो शिद्दत से उतनी, कभी दिल किसी का जलाया नहीं करते
कभी जो किसी ने बख़्शें हों वफ़ा के महकते हुये फूल
वो ख़ुशबू दिले बेरहम से किसी दम मिटाया नहीं करते
हुआ बेख़बर आज निर्मल, उसे जब ये अहसास हो गया कि
मुहब्बत को अपनी, कभी नज़रों से यूं गिराया नहीं करते
Tuesday, July 28, 2009
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वो जिनके दिलों में नहीं, तेरे जज़बाते दिल की कोई जगह
ReplyDeleteयूं बेवजह फिर उन पे अपनी मुहब्बत लुटाया नहीं करते
waah
waah
har she'r bhaari hai
ye ghazal bahut pyaari hai !
mubaaraq !
कभी कच्चे रिश्तों की दहलीज़ पे सर झुकाया नहीं करते
ReplyDeleteबेजान हों जो बुनियादें उन पे कभी घर बसाया नहीं करते
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ।