Saturday, October 31, 2009

जलता दिया

जलता दिया
जलाये जिया
पास नहीं जब
होते पिया
जलता दिया...

दीवाली की
रौनक
करे मन को
बेकल,
कैसे
सँभालूं मैं
उठती जो
हलचल,
देखूँ ये
जगमग
तो
तड़पे हिया
जलता दिया...

चमकीली
लड़ियों ने
है जादू बिखेरा
विरह की
घड़ियों ने मगर
मुझको घेरा,
अन्गारों सी
पल-पल
जले है
उमरिया
जलता दिया...

पूछे है
मुझसे ये
अनारों का मौसम
ऐसे में
होते क्यों
परदेसी हमदम,
फुलझरियाँ
क्या जाने
जो
मैने जिया
जलता दिया

Sunday, October 25, 2009

वहां से आने के बाद

इस तरह से कटी ज़िन्दगी वहां से आने के बाद
हर क़दम पे बढ़ी तशनगी वहां से आने के बाद

प्यार-नफ़रत, मुहब्बत-अदावत, वफ़ा-बेवफ़ाई
रिश्तों में बस रही टूटती वहां से आने के बाद

बात कुछ और थी वो शहर तेरे की मेरे यार
फिर न पाई कभी वो ख़ुशी वहां से आने के बाद

छोड़ कर घर तेरा, हम भटकते रहे दर-बदर
कोई तुझसा न मिला हमनशीं वहां से आने के बाद

जो मिले थे मुझे मशवरे मेरे चलने से पहले
भूल मैं सब गया वो तभी वहां से आने के बाद

डूब के रह गया आफ़ताबे हस्ती मिरा इक पल में
खो गई भीड़ में रोशनी वहां से आने के बाद

दिल मेरा अब कभी उस तरफ़ जाने का नाम न ले
उड़ गई वो मेरी सादगी वहां से आने के बाद

हैं सितमगर बहुत, हादसे ज़िन्दगी के निर्मल
हो न पाती कभी बन्दगी वहां से आने के बाद

Tuesday, October 20, 2009

ओ मेरे वैरागी-मन

ओ मेरे वैरागी मन

भूल गया तू हँसना-गाना
विसर गया सब आना-जाना
किस चिन्ता में रहता डूबा
कैसा है ये बावरापन
ओ मेरे वैरागी-मन

पीढ़ी से पीढ़ी तक भटका
इधर कभी तो उधर है अटका
उस पार कभी तू जा न सका
बीच अधर ही रहा तू लटका

कर न सका तू वश में उसको
श्रद्धा के दे चन्द सुमन
ओ मेरे वैरागी-मन

लिप्त रहा बस अपनेपन में
निर्लिप्त हुआ न किसी भी क्षण में
लेकर अपने कर में माला
झांका केवल दूसरे मन में

रही कामना लेने की ही
फिर भी रहा तू निर्धन
ओ मेरे वैरागी-मन

यह कैसा वैराग रचाया
जिसको समझ कभी न पाया
क्यों न बना तू निश्छल दरिया
क्यों न प्रेममार्ग अपनाया

बाँट दे अपने प्रेम की ख़ुशबू
बन के अब भी मस्त पवन
ओ मेरे वैरागी-मन

Wednesday, October 14, 2009

दीवाली

(दीवाली की अनेकों-अनेक शुभकामनाओं सहित)


दीयों की
बारात सजी है
झूमे सब-के-सब
घर-बार,
बाद बरस के
आया देखो
ये पावन
त्योहार,

ख़ुशियों की
फुलझरियाँ छूटें
मन में आस के
लड्डू फूटें,
आस्मान तक
हुआ है रोशन
ग़म न बचा अब
किसी भी तन-मन,
जगमग जगमग
होने लग गया
ये सारा
संसार

उपहारों ने
ज़ोर है पकड़ा
मुस्कानों का
रंग है गहरा,
रूठे थे जो
मान चले हैं
झगड़े थे जो
गले मिले हैं,
दीप जगे हैं
नयनों में और
दिल में चले
अनार

भीनी-भीनी
ख़ुशबू महकी
रंग-बिरंगी
लड़ियां लटकीं,
धूम-धड़क्का
होती जाती
आतिशबाज़ी
चढ़ती जाती,
नई-नवेली
दुल्हन सा फिर
सज गया
रूप-सिंगार

त्योहारों का
आता मौसम
सुख अपने संग
लाता मौसम,
कैसा भी बनवास
हो यारा
ख़त्म हो जाये
इक दिन सारा,
हुआ उजाला
दिल-दिल में
अब गिरने लगी
दीवार
बाद बरस के
आया देखो
ये पावन
त्योहार...

Thursday, October 8, 2009

दीवानगी

लिख लेता हूँ
ख़ुद ही पढ़ लेता हूँ
गा लेता हूँ
खुद ही सुन लेता हूँ
दीवारों से बातें करता हूँ
तस्वीरों में खोजा करता हूँ
ख़्वाबों के महल
बनाता हूँ
तन्हाई में आवाज़
लगाता हूँ
यह दिल हरदम
तुझको ही
ढूँढा करता है
कोई भी बात चले
ज़िक्र तेरा ही
करता है
दीवाना है न...
दीवानों को
होश कहाँ रहती है
इश्क़ के मारों को
बस
इक लगन
लगी रहती है