न जाने किस जहां से आई हो तुम
मुहब्बत साथ अपने लाई हो तुम
बड़ा वीरान था दिल का चमन ये
बहारों के ख़ज़ाने लाई हो तुम
बहुत ख़ामोश थे जज़बात मेरे
दिले बेताब जो टकराई हो तुम
सुरीली धुन मुहब्बत की बजी तब
सुरों में जबसे ढल के आई हो तुम
मुझे तो हर लम्हा अच्छा लगे अब
समा ये ख़ूबसूरत लाई हो तुम
कभी दिल भर न पाये वो हसीं इक
नई सौग़ात लेकर आई हो तुम
जो पाया तुझको तो लगने लगा ये
कि बस मेरे लिये ही आई हो तुम
वक्त की शाख़ों पे गुल खिल पड़े हैं
मुहब्बत के वो पल-पल लाई हो तुम
पता ही ना चला कब ज़िन्दगी ये
हसीं इक मोड़ पे ले आई हो तुम
बदल तेरा न कोई भी मिला है
दिले आकाश पे युं छाई हो तुम
खुदा से मांगते थे रात दिन जो
वो सब मांगी मुरादें लाई हो तुम
अंधेरों में भटकती ज़िन्दगी थी
ख़ुदाई नूर लेकर आई हो तुम
Saturday, April 24, 2010
Wednesday, April 14, 2010
कभी हो सके तो
ख़ुदाया, अगर हूँ इबादत के क़ाबिल
तो मिलती नहीं क्यों कभी मुझको मंज़िल
दुआओं में मेरी असर कुछ नहीं है
सिवा ग़म के होता नहीं कुछ भी हासिल
सलीका कभी बन्दगी का न आता
नहीं साथ कोई तो होती है मुश्किल
ये रहमो इनायत के चर्चे हैं घर-घर
कभी घर मेरे भी लगा दे तू महफ़िल
करिश्मे तुम्हारे सुनूं जब कभी मैं
मचल के कली दिल की जाती है खिल
युं जलवे तुम्हारे तो बिखरे हैं हर सू
मेरी ज़िन्दगी से अंधेरे हैं घुलमिल
मिला है न जाने तू कितनों को हमदम
कभी हो सके तो मुझे भी कहीं मिल
ये निर्मल को करनी हैं बातें बहुत सी
हो मुमकिन कभी प्यार से उसको तू मिल
तो मिलती नहीं क्यों कभी मुझको मंज़िल
दुआओं में मेरी असर कुछ नहीं है
सिवा ग़म के होता नहीं कुछ भी हासिल
सलीका कभी बन्दगी का न आता
नहीं साथ कोई तो होती है मुश्किल
ये रहमो इनायत के चर्चे हैं घर-घर
कभी घर मेरे भी लगा दे तू महफ़िल
करिश्मे तुम्हारे सुनूं जब कभी मैं
मचल के कली दिल की जाती है खिल
युं जलवे तुम्हारे तो बिखरे हैं हर सू
मेरी ज़िन्दगी से अंधेरे हैं घुलमिल
मिला है न जाने तू कितनों को हमदम
कभी हो सके तो मुझे भी कहीं मिल
ये निर्मल को करनी हैं बातें बहुत सी
हो मुमकिन कभी प्यार से उसको तू मिल
Monday, April 12, 2010
आतंक
आंगन में
उतरे जो साये
विस्फोटों से
दिल दहलाये,
तड़-तड़ करके
ऐसे चीख़े
घर वालों को
मौत सुलाये,
पांव बड़े
आतंक के देखे
रह गये सारे
हक्के-बक्के,
ख़ून-ख़राबा
गोला-बारी
गलियां सूनी
मरघट चहके,
पौरुषता को
कभी न भाये,
धर्म-जुर्म का
गहरा नाता
सहमी बहना
सहमा भ्राता,
आचार संहिता
दम तोड़े तो
दुर्बल कोई
न्याय न पाता,
सबको दहशत
से धमकाये,
अजगर भय का
जग को लीले
कृष्ण ही आकर
इसको कीलें,
एक नहीं कई
शिव चाहिये
जो उग्रवाद के
ज़हर को पी लें
रक्त विषैला
कहाँ से लाये
आंगन में
उतरे जो साये
उतरे जो साये
विस्फोटों से
दिल दहलाये,
तड़-तड़ करके
ऐसे चीख़े
घर वालों को
मौत सुलाये,
पांव बड़े
आतंक के देखे
रह गये सारे
हक्के-बक्के,
ख़ून-ख़राबा
गोला-बारी
गलियां सूनी
मरघट चहके,
पौरुषता को
कभी न भाये,
धर्म-जुर्म का
गहरा नाता
सहमी बहना
सहमा भ्राता,
आचार संहिता
दम तोड़े तो
दुर्बल कोई
न्याय न पाता,
सबको दहशत
से धमकाये,
अजगर भय का
जग को लीले
कृष्ण ही आकर
इसको कीलें,
एक नहीं कई
शिव चाहिये
जो उग्रवाद के
ज़हर को पी लें
रक्त विषैला
कहाँ से लाये
आंगन में
उतरे जो साये
Sunday, April 4, 2010
इश्क़
पता नहीं
ये सज़ा है
या मज़ा है,
कज़ा है
या रज़ा है,
पता है तो
केवल,
बिन इसके
सब बदमज़ा है,
ख़ता है, गिला है
कि सिला है,
न जाने
ये इश्क़ क्या
बला है,
जाने तो बस
फ़स्ले ग़म है
चश्मे नम है
और दर्दे ज़ख़्म है,
मगर
शम्मे नूरानी है
हुक़्मे सुल्तानी है,
सदाये आस्मानी है
जरिया भले जिस्मानी है,
इसलिये
जिनकी क़िस्मत है
उनकी अज़मत है
उनकी जन्नत है,
उनकी आदत उनकी इबादत
उनकी मुहब्बत है
उनकी मुहब्बत है
ये सज़ा है
या मज़ा है,
कज़ा है
या रज़ा है,
पता है तो
केवल,
बिन इसके
सब बदमज़ा है,
ख़ता है, गिला है
कि सिला है,
न जाने
ये इश्क़ क्या
बला है,
जाने तो बस
फ़स्ले ग़म है
चश्मे नम है
और दर्दे ज़ख़्म है,
मगर
शम्मे नूरानी है
हुक़्मे सुल्तानी है,
सदाये आस्मानी है
जरिया भले जिस्मानी है,
इसलिये
जिनकी क़िस्मत है
उनकी अज़मत है
उनकी जन्नत है,
उनकी आदत उनकी इबादत
उनकी मुहब्बत है
उनकी मुहब्बत है
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