Saturday, October 31, 2009

जलता दिया

जलता दिया
जलाये जिया
पास नहीं जब
होते पिया
जलता दिया...

दीवाली की
रौनक
करे मन को
बेकल,
कैसे
सँभालूं मैं
उठती जो
हलचल,
देखूँ ये
जगमग
तो
तड़पे हिया
जलता दिया...

चमकीली
लड़ियों ने
है जादू बिखेरा
विरह की
घड़ियों ने मगर
मुझको घेरा,
अन्गारों सी
पल-पल
जले है
उमरिया
जलता दिया...

पूछे है
मुझसे ये
अनारों का मौसम
ऐसे में
होते क्यों
परदेसी हमदम,
फुलझरियाँ
क्या जाने
जो
मैने जिया
जलता दिया

7 comments:

  1. खूबसूरत। वाह।

    दिया जले जब घर के बाहर कहते उसर दिवाली।
    दिल के अन्दर दिया जले तो होते लोग सवाली।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  2. खूबसूरत। वाह।

    दिया जले जब घर के बाहर कहते उसे दिवाली।
    दिल के अन्दर दिया जले तो होते लोग सवाली।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  3. जलता दिया
    जलाये जिया
    पास नहीं जब
    होते पिया।
    अच्‍छी रचना, बधाई।

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  4. बहुत शानदार अभिव्यक्ति। रचना। मुश्किल एक टिप्पणी देने से बचना।

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  5. कहीं दिया जले कहीं जिया यही कहती है आपकी तडप ।

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  6. अच्छी अभिव्यक्ति है निर्मल जी ।
    शरद कोकास "पुरातत्ववेत्ता " http://sharadkokas.blogspot.com

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