जलता दिया
जलाये जिया
पास नहीं जब
होते पिया
जलता दिया...
दीवाली की
रौनक
करे मन को
बेकल,
कैसे
सँभालूं मैं
उठती जो
हलचल,
देखूँ ये
जगमग
तो
तड़पे हिया
जलता दिया...
चमकीली
लड़ियों ने
है जादू बिखेरा
विरह की
घड़ियों ने मगर
मुझको घेरा,
अन्गारों सी
पल-पल
जले है
उमरिया
जलता दिया...
पूछे है
मुझसे ये
अनारों का मौसम
ऐसे में
होते क्यों
परदेसी हमदम,
फुलझरियाँ
क्या जाने
जो
मैने जिया
जलता दिया
Saturday, October 31, 2009
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खूबसूरत। वाह।
ReplyDeleteदिया जले जब घर के बाहर कहते उसर दिवाली।
दिल के अन्दर दिया जले तो होते लोग सवाली।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
खूबसूरत। वाह।
ReplyDeleteदिया जले जब घर के बाहर कहते उसे दिवाली।
दिल के अन्दर दिया जले तो होते लोग सवाली।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
जलता दिया
ReplyDeleteजलाये जिया
पास नहीं जब
होते पिया।
अच्छी रचना, बधाई।
बहुत शानदार अभिव्यक्ति। रचना। मुश्किल एक टिप्पणी देने से बचना।
ReplyDeleteaccha diya jalaiya hai
ReplyDeleteकहीं दिया जले कहीं जिया यही कहती है आपकी तडप ।
ReplyDeleteअच्छी अभिव्यक्ति है निर्मल जी ।
ReplyDeleteशरद कोकास "पुरातत्ववेत्ता " http://sharadkokas.blogspot.com