Wednesday, June 29, 2011

तुम मिले जो मुझे

तुम मिले जो मुझे,बात बनने लगी
ज़िन्दगी को नई राह दिखने लगी

थी न रौनक ज़रा सी चमन में कहीं
अब तो फूलों की बरसात होने लगी

जो जगह थी अंधेरों में डूबी हुई
वो तेरी चाँदनी से चमकने लगी

सूझता कुछ नहीं था लबों को जहाँ
उन पे गीतों की सरगम मचलने लगी

रंग तस्वीर के सब थे फीके हुये
फिर से जीवन की बगिया महकने लगी

तुमसे रोशन है निर्मल के दिल का जहां
प्यार की इक शमा उस में जगने लगी

Saturday, June 18, 2011

तुम जो होते

साथ मेरे तुम जो होते ज़िन्दगी फिर मुस्कुराती
नाचते फिर हर घड़ी हम हर तमन्ना खिलखिलाती

धड़कनें मदहोश होतीं चाहतें पुरजोश होतीं
आस्मानों पर हमारे कहकशां ही जगमगाती

गीत दिल की वादियों में गूंजते पल-पल नये फिर
संग भंवरे के कली मिल गीत हरदम गुनगुनाती

थे ज़रूरत तुम सफ़र की और ना कुछ चाहिये था
हाथ में जो हाथ होता फिर तो मंज़िल मिल ही जाती

खो गये पर तुम न जाने वक़्त की किन ग़र्दिशों में
याद निर्मल को तुम्हारी रोज़ोशब अब है सताती

Wednesday, June 15, 2011

दिन गुजरते हैं

दिन गुज़रते हैं हवाओं की तरह
लोग मिलते हैं घटाओं की तरह

फूल कागज़ का बनी ये ज़िन्दगी
दिल हैं जलते अब चिताओं की तरह

मुश्किलों ने है जो चेहरे पे जड़ा
दिख रहा है वो सज़ाओं की तरह

है नज़र ख़ामोश दिल को होश ना
ज़िन्दगी है चुप ख़लाओं की तरह

किससे बोलें किससे निस्बत हम करें
काश,हो कोई दवाओं की तरह

गर ज़रूरत ही नहीं निर्मल तेरी
क्यों हो चिपके तुम बलाओं की तरह

Monday, June 13, 2011

गुजर गये इस जहां से

गुज़र गये इस जहां से हम तो जहां ये फिर भी चला करेगा
कभी न रुकता, कभी न थमता वक़्त का दरिया बहा करेगा

ले सांस में सांस जो हैं कहते, संग जियेंगे संग मरेंगे
हुआ कभी ना किसी जनम जो,वो कल भी ना हुआ करेगा

रिश्तों का ब्योपार बना जग,कभी मुनाफ़ा कभी है घाटा
ख़ुदा ही जाने ख़ुदा ही समझे ऐसा कब तक चला करेगा

प्यार मुहब्बत हुये अनोखे,कहीं वफ़ा तो कहीं हैं धोके
नये वक़्त में प्यार की ख़ातिर अब न कोई मिटा करेगा

कोई किसी के संग मरे ना,मरे तो निर्मल आप मरे बस
किया बुरा है जहां में जिसने वही तो आख़िर भरा करेगा

अपना प्यारा जहां

कहाँ और कैसे
मिला था तुझे
ये भण्डार
जिसे तू
बांटता रहा
पल-पल
फिर भी
जो अब तक
कभी ख़त्म
न हो सका,
किस मोड़ पे
दबा पाया था
तूने ये ख़ज़ाना
जिसे तू
दिल खोल कर
लुटाता रहा हरदम
फिर भी जो अब तक
ज़रा
कम न हो सका,
क्योंकर
चला था तू उधर
कैसे
पहुँचा था तू वहाँ?
कैसा था वो नगर
कैसा था वो जहां?
हो सके तो
कर ज़रा
मुझे भी इशारा
दे सके तो दे
मुझे भी उस
नगर का ठिकाना
ताकि आ सकूँ
मैं भी वहाँ
और पा सकूँ
मैं भी वहाँ
सदियों से बिछ्ड़ा
अपना प्यारा जहां
अपना
प्यारा जहां...