Sunday, October 30, 2011

ज़िन्दगी में कभी रोते को हंसा कर देखो

ज़िन्दगी में कभी रोते को हंसा कर देखो
अपने रूठे हुये दोस्त को मना कर देखो

फ़लसफ़ा सब ये समझ में आ जायेगा तेरे
इक मुहब्बत का दीया दिल में जगा कर देखो

इन असूलों ने तो बर्बाद किया कितनों को
है मज़ा तब, कभी गिरतों को उठा कर देखो

किस क़दर फैल गया है ये जुनूने मजहब
अपने चारो तरफ़ नज़रें तो उठा कर देखो

दूर हो जायेंगे सब फ़ासले जो तुम चाहो
ज़िन्दगी गीत है उल्फ़त का इसे गा कर देखो

कोई कितना भी हो संगदिल वो पिघल जाता है
बस ज़रा आँख से तुम आँख मिला कर देखो

कौन कहता है ख़ुदा दूर बहुत है तुमसे
पास है तेरे वो आवाज़ लगा कर देखो

हर तमन्ना तेरी हो जायेगी पूरी निर्मल
घर फ़कीरों के कभी तुम ज़रा जाकर देखो

Friday, October 28, 2011

तू सुन मेरा शिकवा गिला

कुछ नहीं सूझे ख़ुदा, तू सुन मेरा शिकवा गिला
कब तलक चलता रहेगा इन ग़मों का सिलसिला

ज़िन्दगी थक हार कर ख़ामोश है रहने लगी
सांस जाने क्यों चले, ये क्यों न रुकता क़ाफ़िला

धर पकड़ होती रही पर हाथ ना आया कभी
मन का पंछी भी ग़ज़ब है जब मिला उड़ता मिला

खुल के हंसने की तमन्ना दिल में घुटती ही रही
पर ज़माना मुझपे हरदम मुस्कुराता ही मिला

सांप चलते ही मिले हैं आस्तीनों में यहाँ
ख़ूब यारों ने दिया है इन वफ़ाओं का सिला

क्या है खोया, क्या है पाया ये समझ ना आ सका
पर जो निकला ज़िन्दगी से वो गया है दिल हिला

ना ही बरसा कोई मौसम छत पे निर्मल की कभी
ना ही चमका कोई तारा ना ही कोई गुल खिला

Sunday, October 23, 2011

हो मुबारक सबको दिन दीवाली का

आज ख़ुशियां लेके आया दिन दिवाली का
प्यार का संदेश लाया दिन दीवाली का

हो मुबारक आप सबको ये सुहाना दिन
है बहुत ही जगमगाया दिन दीवाली का

दीप जलते हर गली हर मोड़ पे अपने
हर नज़र में है समाया दिन दीवाली का

चमचमाती रोशनी ने वो समा बांधा
हर ज़ुबां ने गुनगुनाया दिन दीवाली का

भूल कर सबसे अदावत दोस्ती पालो
है यही पैग़ाम लाया दिन दीवाली का

ख़ुशनसीबी यूं तो अपनी भी नहीं कुछ कम
साथ सबके है मनाया दिन दीवाली का

Friday, October 21, 2011

दीपावली के अवसर पर एक तरही ग़जल

दीप ख़ुशियों के जल उठे हर सू
रात, दिन बन गई लगे हर सू

जगमगाने लगा शहर कुछ यूं
कि चमक ही चमक दिखे हर सू

बाद मुद्दत के हो रही हलचल
अब नगर में मेले लगे हर सू

है चमकता सितारों सा हर घर
जोत से जोत जब जगे हर सू

शोर है मच रहा पटाख़ों का
यूं नदी जोश की बहे हर सू

गुनगुनाता रहे चमन सारा
प्यार की बात ही चले हर सू

दूर दुनिया से ग़म हो जायें गर
गीत उल्फ़त का बज उठे हर सू

मुस्कुराते हुये वो आये जब
यूं लगा फूल हैं खिले हर सू

ज़िन्दगी मौज में गुज़र जाये
वो चलें साथ जो मिरे हर सू

प्यार को तेरे कोई ना समझे
तू तो निर्मल यूं ही बिके हर सू

Monday, October 17, 2011

दिन आज भी निकला है

दिन आज भी निकला है
दिन कल भी निकलेगा
उम्मीद का सूरज जाने कब
किस ओर से निकलेगा

इन्तज़ार की घड़ियां गिन
गिन नज़र गई पथराई
जिसकी ख़ातिर जीने
निकले वही नज़र न आई,
उस मंज़िल का पता न
जाने किसकी ज़ुबां से निकलेगा

भटक-भटक के दुनिया देखी
अटक-अटक चली जीवन गाड़ी
सहम-सहम के दिन हैं बीते
तड़प-तड़प के रातें काटी
चाँद ही जाने वो किस रोज़
हमारी छत पर निकलेगा

जीवन मंथन करते-करते
हम हुये थकन से चूर
यूं ही चलते-चलते हम
आ पहुँचे हैं कितनी दूर
अपने भाग्य का मोती जाने
किस गहराई से निकलेगा

कहाँ से आये किधर है जाना
नहीं पता न कोई ठिकाना
किससे हम फ़रियाद करें कि
किसे है पाना किसे है खोना
उसके घर जाने का रस्ता पता
नहीं किस तरफ़ से निकलेगा
दिन आज भी निकला है
दिन कल भी निकलेगा...

Saturday, October 15, 2011

फौजा सिंह को समर्पित

ज़िन्दगी में हर घड़ी वो दौड़ता ही जा रहा
हर किसी को आज पीछे छोड़ता ही जा रहा

दौड़ना ही ज़िन्दगी है, दौड़ना ही बन्दगी
इश्क उसको दौड़ने से, दौड़ने से हर ख़ुशी
इस डगर को उस डगर से जोड़ता ही जा रहा

नाम उसका फ़ौजियों सा,साधुओं सा भेस है
हिन्द की है शान वो तो हिन्द उसका देस है
जो बने हैं सब रिकार्ड तोड़ता ही जा रहा

सौ बरस की उम्र है पर नौजवां सा जोश है
देख उसको ये लगे है उसको पूरा होश है
हर क़दम वो रुख़ हवा का मोड़ता ही जा रहा

ना हकीमों की ज़रूरत ना दवायें ले कभी
ना ही खाये बेज़रूरत ना ही पीये मय कभी
दिल में उठते गर्व को वो फोड़ता ही जा रहा

जान फूंके सबके दिल में सबको देता है सदा
उसके जीवन से मिले है सबको जीने की अदा
रहमतों से वो ख़ुदा की दौड़ता ही जा रहा
ज़िन्दगी में हर घड़ी वो दौड़ता ही जा रहा.....

Saturday, October 8, 2011

प्यार है तो

प्यार है तो प्यार का इज़हार होना चाहिये
आशिकों में हिम्मते इक़रार होना चाहिये

प्यार करना हर किसी के बस में होता ही नहीं
आशिकी में आदमी दमदार होना चाहिये

साथ जब तक हो न कोई ज़िन्दगी क्या ज़िन्दगी
ज़िन्दगी में एक अपना यार होना चाहिये

राज़ की ये बात सुन लो कह गये आशिक़ बड़े
डूब जायें हम मगर दिल पार होना चाहिये

रोग लाईलाज है ये मानते हैं सब मगर
इस मुहब्बत में बड़ा क़िरदार होना चाहिये

है दुआ अपनी यही कि इस जहां में अब तो बस
हर किसी को हर किसी से प्यार होना चाहिये

Monday, October 3, 2011

हमसे तुम हो

मैं अगर एक
उभरता सितारा होता
तो बात कुछ और होती
लेकिन अब मैं
एक ढलता सूरज हूँ
इसलिये
बात कुछ और है,

वक़्त की अदालत ने
जो फ़ैसला दिया
उसके एवज़
बालों में चाँदी
चेहरे पे शिकन
हाथों में कमज़ोरी
और पांव में थकन मिली है,

तुम कहते हो
ये करो वो करो
ऐसे रहो वैसे रहो
इधर आओ,उधर जाओ
इसे ले जाओ,उसे ले आओ,
किससे कहूँ
मजबूरियों का तांता है
ज़ुबान पर ताला है
अपना न रहा अब कुछ
हुआ सब बेगाना है,

मगर फिर भी
ऊपरी अदालत का
फ़ैसला अभी बाक़ी है
मेरी अपील में
ये साफ़-साफ़ दर्ज है कि
तुमसे हम नहीं हैं
हमसे तुम हो,

इस निचली अदालत ने
सदा किसका साथ दिया है
कल मेरे साथ थी
आज तेरे साथ है
कल किसी और के साथ होगी
इसलिये
याद रखो कि
तुमसे हम नहीं हैं
हमसे तुम हो
हमसे तुम हो.....

Saturday, October 1, 2011

अजीब हो तुम

अजीब हो
तुम भी सनम,
जब तो आँखों में
आँसू छलकते हैं
नज़र तुम्हारी
हम पर टिकी होती है,
जब आँखों में
मस्ती के बादल लहराते हैं
नज़र तुम्हारी
कहीं और टिकी होती है,

जब होंठों पे तुम्हारे
दर्द भरी कोई
दास्तान मचलती है
उसे सुनने वाले
केवल हम होते हैं,
जब होंठों पे तुम्हारे
नशीली मदिरा छलकती है
उसे चखने वाले
कोई और होते हैं,

जब दिल कभी तुम्हारा
उदासियों की अनगिनत
तहों के नीचे दबा होता है
उसे वहाँ से निकालने वाले भी
हम ही होते हैं,
पर जब कभी दिल तुम्हारा
आस्मान की बुलन्दियां
छू रहा होता है
उसे वहाँ से लपकने वाले
कोई और होते हैं,

अजीब हो
तुम भी सनम,
काश कि कुछ तो समझते
कुछ तो जानते,
अब
समुन्दर कैसे बताये तुम्हें
कि उसके भीतर क्या-क्या छुपा है
परबत कैसे बताये तुम्हें
कि उसके अन्दर कैसा-कैसा
लावा दबा है
अजीब हो
तुम भी सनम.....