Sunday, December 26, 2010

नया साल मुबारक हो सबको

नये अंदाज़ में ढल कर नया फिर साल आया है
नई ख़ुशियां नये सपने ये अपने साथ लाया है

नये रिश्ते बनेंगे और कुछ क़िस्से बनेंगे फिर
नये नग़्मे पिरो कर फिर नई सुरताल लाया है

दुआयें साथ इसके हैं वफ़ायें साथ इसके हैं
मुहब्बत की सुरीली धुन सुनाने आज आया है

संजोये दिल में रक्खे हैं तेरे संग पल जो गुज़रे हैं
रहेंगे साथ आगे भी यही फिर आस लाया है

वो कड़वी सी जो यादें हैं उन्हें तुम भूल अब जाना
ज़रा देखो तेरी ख़ातिर नई सौग़ात लाया है

मुबारक दे रहा निर्मल सबों को आज इस मौक़े
ज़रा तुम नाच दिखलाओ कि उसने गीत गाया है

Thursday, December 23, 2010

कोई दुखड़ों में

कोई दुखड़ों में जीता है तो कोई मुस्कुराता है
ख़ुदा भी हर घड़ी हर पल नये जलवे दिखाता है

ख़ुशी से कोई लिपटा है दुखों में कोई डूबा है
किसी को दूर ले जाता किसी को पास लाता है

कहीं से तोड़ देता है कहीं वो जोड़ देता है
कोई तो छूट जाता है कोई बस टूट जाता है

कहीं हंसती बहारें हैं कहीं रोती घटायें हैं
नहीं उम्मीद हो जिसकी उसे वो यूं मिलाता है

किसी के पास देखो तो हसीं दिलकश नज़ारे हैं
किसी को ज़िन्दगी भर वो न जाने क्यों सताता है

करें कितनी भी कोशीश हम उसे हम छू नहीं सकते
वही जाने कि वो क्यों इस तरह दुनिया चलाता है

Saturday, December 18, 2010

तकदीर

माथे पे खुदी होती हाथों पे लिखी होती
तक़दीर कहाँ आख़िर इन्सां की छुपी होती

किस देश में मिलती है जो चीज़ मुक़द्दर है
हैं कौन से मयखाने जिनमें है ख़ुशी होती

रोशन हैं कहाँ होते क़िस्मत के सितारे ये
है दिल की जो दुनिया किस जन्नत में बसी होती

किस ओर निकलता है ख़ुर्शीद करिश्मों का
ख़ैरात वो रहमत की किन हाथ बंटी होती

कर लेते यकीं हम भी रत्नों की दुकानों पर
ख़्वाबों को हमारे गर ताबीर मिली होती

अपना ही किया पाते अपना ही किया खोते
कोई बात नहीं निर्मल इनमें है सही होती

Tuesday, November 23, 2010

बिखरा-बिखरा सा आलम

बिखरा-बिखरा सा आलम है सब, बिखरे-बिखरे से हम
उखड़े-उखड़े से सपने हैं अब, उखड़े-उखड़े से हम

न कोई सुनने वाला है, न कोई साथी है अपना
कोई क्या जाने रहते हैं क्यों, सहमे-सहमे से हम

दीवारों से होती हैं बातें, जब भी मिलता है मौक़ा
हैं दुनिया के सागर में वर्ना, क़तरे-क़तरे से हम

इस दिल में हरदम अब तो, लगता तन्हाई का मेला
खोई सी नज़रें, सूने से घर में, टुकड़े-टुकड़े से हम

दिल के सौदे में निर्मल, घाटा न होता मुनाफ़ा कोई
जीवन में फिर क्यों हर क़दम उलझे-उलझे से हम

Tuesday, November 16, 2010

इक आरज़ू मेरी

इक आरज़ू मेरी, तेरे दिल में समा न सकी
जाने ख़ुदा अब तू ही क्यों तुझको लुभा न सकी

कोई ख़ुदाई तो नहीं मांगी कभी मैंने तेरी
फिर भी तुझे मेरी तमन्ना नज़र आ न सकी

दुनिया में सब कहते करिश्मों का मसीहा तुझे
फिर ये करिश्मा क्यों तेरी कुदरत दिखा न सकी

मैं आज तक समझा नहीं क्या बात थी मुझमें जो
अपनी मुहब्बत तेरे दिल में वो जगा न सकी

लेकर ये ग़म चलते रहे हम ज़िन्दगी भर मगर
दुनिया कभी संग अपने हमको युं चला न सकी

निर्मल तेरे अहबाब जलते हैं मगर दूर से
उनको कभी तेरी मुहब्बत पास ला न सकी

Tuesday, November 9, 2010

दूर हूँ मैं

दूर हूँ मैं तुझसे, फिर भी पास हूँ
ग़म न कर तू मैं तेरे ही साथ हूँ

सुन रहा हूँ दोस्त, पर ये सच नहीं
लोग कहते हैं कि गुज़री बात हूँ

सोच न अब दिल जो चाहे कर ले तू
हर घड़ी हर पल मै नई आस हूँ

ये हक़ीकत आज भी है मान तू
मैं मुहब्बत से भरा इक राग हूँ

देर न कर आ मेरे तू पास आ
मैं वही जो तेरे दिल का साज़ हूँ

वक़्त की दहलीज़ पर निर्मल खड़ा
तू इधर तो मैं उधर आबाद हूँ

Wednesday, November 3, 2010

दीपावली की शुभकामनाओं के साथ

सारा शहर दुल्हन बना ख़ुशियाँ उतारें आरती
चन्दा नहीं फिर भी लगे पुर-क़ैफ़ बिखरी चाँदनी

आओ कि हम देखें ज़रा क्या धूम मचती कू-ब-कू
आतिश चले लड़ियाँ सजें छंटने लगी सब तीरगी

ऐसा लगे हर सू ख़ुदाई नूर है फैला हुआ
मख़्मूर सब तन-मन हुआ खिलने लगी मन की कली

मिलते रहें दिल-दिल से तो चमका करे हर ज़िन्दगी
जलते रहें दीपक सदा क़ायम रहे ये रौशनी

मन का दिया रौशन हो जब जाते बिसर दुनिय के ग़म
बचता न कुछ भी शेष फिर बचती फ़कत दीवानगी

पैग़ाम देता है यही, त्योहार ये इक बार फिर
हम दोस्ती में डूब जायें भूल कर सब दुश्मनी

हमदम बनें, मिल कर चलें, सपने बुनें, नग़्मे लिखें
जीवन डगर पे रोज़ हम छेड़ें नई इक रागिनी

माना चमन में हर तरफ़ माहौल है बिगड़ा हुआ
फिर भी ख़ुदा पे रख यक़ीं दिखलायेगा जादूगरी

बाहों में बाहें डाल कर, दुख-दर्द सारे भूल कर
परिवार संग निर्मल मेरे तू युं मना दीपावली

Friday, October 29, 2010

तोड़ कर दिल मेरा

तोड़ कर दिल मेरा जाओगे तुम कहाँ
गर चले तुम गये आओगे फिर यहाँ

दिल मेरा बन गया घर तेरा जाने जां
छोड़ घर चैन तुम पाओगे फिर कहाँ

छोड़ते हम नहीं थाम कर हाथ फिर
जान लो तुम भी ये जानते सब यहाँ

प्यार जो कर लिया, कर लिया कर लिया
झांकते फिर नहीं हम यहाँ औ वहाँ

मिल गये तुम अगर तो समझ लेंगे हम
पा लिया है ख़ुदा, पा लिया है जहाँ

दो दिलों के मेल को देखता जब ख़ुदा
झूमता नाचता वो यहाँ से वहाँ

प्यार ने कर दिये साथ हम और तुम
ख़ुश है निर्मल वर्ना तुम कहाँ हम कहाँ

Friday, October 22, 2010

जाने कब तुम आओगे साजन

जाने कब तुम आओगे साजन
अपना रूप दिखाओगे साजन
जाने कब तुम...

नदी गीत की सूख चली है
छन्द की भाषा रूठ चली है
ग़ज़ल को मिलता नहीं रास्ता
नज़्म बिचारी डूब चली है
कब तुम पार लगाओगे साजन
जाने कब तुम...

पल भर का ये साथ चले ना
बहुत दूर से प्यार पले ना
अब आना तो जम कर आना
गर्म हवा से दाल गले ना
कब तक यूं तरसाओगे साजन
जाने कब तुम...

कौन सी मैं तरक़ीब लगाऊँ
राह कौन सी मैं अपनाऊँ
दुर्बल मन को सूझे कुछ ना
तुझको कैसे पास ले आऊँ
कब मुझमें घुल जाओगे साजन
जाने कब तुम...

यूं दिल तेरा कोई सख़्त नहीं
पर पास मेरे भी वक़्त नहीं
सूरज-चाँद बराबर रहते
हम इतने पर चुस्त नहीं
आकर कब बहलाओगे साजन
जाने कब तुम...

तुम आओ तो हम-तुम खेलें
भर तुझको बाहों में ले लें
तेरी नर्म हथेली पर हम
अपने फिर जज़बात उड़ेलें
तब हमको मिल जाओगे साजन
ख़ुश हमको कर जाओगे साजन
जाने कब तुम आओगे साजन...

Tuesday, October 19, 2010

वरदान

दे हमें वरदान दाता मन में सबके प्यार हो
इस जहाँ में हर तरफ़ फिर प्यार का संसार हो

फिर न उजड़े कोई ग़ुलशन घर न सूना हो कोई
फिर न तरसे दिल किसी का, हो न तन्हा फिर कोई
ज़िन्दगी में सबकी हरदम बस तेरा आधार हो

ना जले आँचल कभी फिर, ना बहे काजल कभी
दोस्त बनके हम रहें बस, ना बने दुश्मन कभी
जो मिले साया तेरा तो सबका बेड़ा पार हो

तोड़े से भी टूटेंगे ना चाहे जो चालें चले
हम रहेंगे उसके हरदम जो मुहब्बत से मिले
ले लिया जब नाम तेरा दूर सब तक़रार हो

कर दे दाता हम पे रहमत जग बने जन्नत यही
प्यार का मौसम रहे बस, मान ले मन्नत यही
और ना कुछ चाहिये फिर बस तेरा दीदार हो

Saturday, October 16, 2010

कोई तो ऐसा हो जो

कोई तो ऐसा हो जो समझे
मुझको जग में अपना
कोई तो ऐसा हो जोचाहे
दिल मेरे में बसना...

आँखों का बस नूर बने वो
बने भोर का तारा,
क़दमों की बस चाल बने वो
बने लहु का धारा,
कोई तो ऐसा हो जो कर दे
शीतल मेरा तपना...

प्यार के रिश्ते में बंध पाऊँ
ऐसी न तक़दीर रही,
ना ही रांझा बन पाया मैं
ना ही कोई हीर रही,
कोई तो ऐसा हो जो पूछे
प्रेम-प्याला चखना ?

जीवन यूं ही लुढ़क चला अब
जैसे हो कच्चा कोठा,
भागे-भागे उम्र है भागी
रहा मुक़द्दर सोता,
कोई तो ऐसा हो जो बोले
संग तेरे मैं चलना...

दूर बादलों के आंगन जा
अपना महल बनाऊँ,
अपने मन की लेकर कलियां
उसको रोज़ सजाऊँ,
कोई तो ऐसा हो जो कर दे
पूरा मेरा सपना...

सरगम बिन संगीत बहे ना
न धड़के गीत का सीना,
बोल मीत के साथ नहीं तो
मरण बराबर जीना,
कोई तो ऐसा हो जो कह दे
नाम तेरा ही जपना...

Tuesday, August 3, 2010

बातें

क़रीब आओ कि हम प्यार की करें बातें
जो दिल से दिल को मिलाओ तो बनें बातें

ये बातें ही तो होतीं हैं जो जोड देती हैं
ये भी मगर सच कि दूर भी करें बातें

न दूर जाओ कि मुश्किल हो जाये फिर आना
रहो कि दिल में मुहब्बत की बस पलें बातें

ये पल सुखों के दुखों में बदल-बदल जाते
जो हर घडी हर पल सीने में जलें बातें

कभी-कभी सब हालात हैं उलट जाते
दबी घुटी औ सहमी सी जब खुलें बातें

उजाले खुशियों के हर तरफ़ बिखरने लगते
कहीं किसी मोड पे उनकी जब सुनें बातें

ज़ुबां के दौर में संभल के गर चलो निर्मल
तो समझ ले तेरी सदियों तक चलें बातें

Sunday, July 11, 2010

ज़रूरी तो नहीं

हर मुसाफ़िर को मिले मंज़िल ज़रूरी तो नहीं
चलती कश्ती को मिले साहिल ज़रूरी तो नहीं

जिनके ख़ातिर धड़कता है दिल अपना हर घड़ी
अपने ख़ातिर धड़के उनका दिल ज़रूरी तो नहीं

चाहने वाले बहुत मिल जाते हैं दुनिया में पर
हर शख़्स में फड़कता हो दिल ज़रूरी तो नहीं

टूट जाये दिल मुहब्बत में तो दोबारा वहाँ
फिर सजे अरमानों की महफ़िल ज़रूरी तो नहीं

हम जिसे दिल की तबाही का देते इल्ज़ाम हैं
हो हक़ीक़त में वही क़ातिल ज़रूरी तो नहीं

दिले आस्मां पे लिखा था नाम जो हमने कभी
याद आता हो उसे निर्मल ज़रूरी तो नहीं

Thursday, June 3, 2010

मौत

खेल कैसा ये तूने बनाया ख़ुदा
मौत ने ज़िन्दगी को हराया ख़ुदा

आने जाने की दौडें लगीं हर तरफ़
तूने अच्छा ये चक्कर चलाया ख़ुदा

ना ये दस्तक है देती, न देती सदा
बिन बुलाये इसे कौन लाया ख़ुदा

ख़ुद बनाता है तू, ख़ुद मिटाता है तू
भेद गहरा समझ में न आया ख़ुदा

वो जो झुकते नहीं थे कहीं भी कभी
वक़्त के ज़ोर उनको झुकाया खुदा

जिनकी पलकों पे सपने सजे बेखबर
नींद गहरी में उनको सुलाया खुदा

आज ग़मगीं जो चेहरा ये निर्मल का है
नाम उसका भी लगता है आया खुदा

Saturday, April 24, 2010

न जाने किस जहां से

न जाने किस जहां से आई हो तुम
मुहब्बत साथ अपने लाई हो तुम

बड़ा वीरान था दिल का चमन ये
बहारों के ख़ज़ाने लाई हो तुम

बहुत ख़ामोश थे जज़बात मेरे
दिले बेताब जो टकराई हो तुम

सुरीली धुन मुहब्बत की बजी तब
सुरों में जबसे ढल के आई हो तुम

मुझे तो हर लम्हा अच्छा लगे अब
समा ये ख़ूबसूरत लाई हो तुम

कभी दिल भर न पाये वो हसीं इक
नई सौग़ात लेकर आई हो तुम

जो पाया तुझको तो लगने लगा ये
कि बस मेरे लिये ही आई हो तुम

वक्त की शाख़ों पे गुल खिल पड़े हैं
मुहब्बत के वो पल-पल लाई हो तुम

पता ही ना चला कब ज़िन्दगी ये
हसीं इक मोड़ पे ले आई हो तुम

बदल तेरा न कोई भी मिला है
दिले आकाश पे युं छाई हो तुम

खुदा से मांगते थे रात दिन जो
वो सब मांगी मुरादें लाई हो तुम

अंधेरों में भटकती ज़िन्दगी थी
ख़ुदाई नूर लेकर आई हो तुम

Wednesday, April 14, 2010

कभी हो सके तो

ख़ुदाया, अगर हूँ इबादत के क़ाबिल
तो मिलती नहीं क्यों कभी मुझको मंज़िल

दुआओं में मेरी असर कुछ नहीं है
सिवा ग़म के होता नहीं कुछ भी हासिल

सलीका कभी बन्दगी का न आता
नहीं साथ कोई तो होती है मुश्किल

ये रहमो इनायत के चर्चे हैं घर-घर
कभी घर मेरे भी लगा दे तू महफ़िल

करिश्मे तुम्हारे सुनूं जब कभी मैं
मचल के कली दिल की जाती है खिल

युं जलवे तुम्हारे तो बिखरे हैं हर सू
मेरी ज़िन्दगी से अंधेरे हैं घुलमिल

मिला है न जाने तू कितनों को हमदम
कभी हो सके तो मुझे भी कहीं मिल

ये निर्मल को करनी हैं बातें बहुत सी
हो मुमकिन कभी प्यार से उसको तू मिल

Monday, April 12, 2010

आतंक

आंगन में
उतरे जो साये
विस्फोटों से
दिल दहलाये,
तड़-तड़ करके
ऐसे चीख़े
घर वालों को
मौत सुलाये,

पांव बड़े
आतंक के देखे
रह गये सारे
हक्के-बक्के,
ख़ून-ख़राबा
गोला-बारी
गलियां सूनी
मरघट चहके,
पौरुषता को
कभी न भाये,

धर्म-जुर्म का
गहरा नाता
सहमी बहना
सहमा भ्राता,
आचार संहिता
दम तोड़े तो
दुर्बल कोई
न्याय न पाता,
सबको दहशत
से धमकाये,

अजगर भय का
जग को लीले
कृष्ण ही आकर
इसको कीलें,
एक नहीं कई
शिव चाहिये
जो उग्रवाद के
ज़हर को पी लें
रक्त विषैला
कहाँ से लाये
आंगन में
उतरे जो साये

Sunday, April 4, 2010

इश्क़

पता नहीं
ये सज़ा है
या मज़ा है,
कज़ा है
या रज़ा है,
पता है तो
केवल,
बिन इसके
सब बदमज़ा है,
ख़ता है, गिला है
कि सिला है,
न जाने
ये इश्क़ क्या
बला है,
जाने तो बस
फ़स्ले ग़म है
चश्मे नम है
और दर्दे ज़ख़्म है,
मगर
शम्मे नूरानी है
हुक़्मे सुल्तानी है,
सदाये आस्मानी है
जरिया भले जिस्मानी है,
इसलिये
जिनकी क़िस्मत है
उनकी अज़मत है
उनकी जन्नत है,
उनकी आदत उनकी इबादत
उनकी मुहब्बत है
उनकी मुहब्बत है

Friday, March 19, 2010

सिफ़र से आगे

चले थे जब हम तो अंधेरे से तमाम आलम घिरा हुआ था
मगर दिया इक किसी डगर पे लिये मुहब्बत जला हुआ था

उसे पकड़ हम बढ़े थे आगे मगर झमेले बहुत मिले फिर
पता चला तब क़दम क़दम पे नया ही मंजर सजा हुआ था

यक़ीन डगमग हुआ हमारा कहीं थी फूटी हमारी क़िस्मत
समझ लगी ना हमें ज़रा भी अंधेर कैसा मचा हुआ था

ज़हर की बूंदे मिली कभी तो कभी ज़रा सी ख़ुशी से फूले
युं रिश्तों की ऊँच नीच को बस बदल बदल कर लिखा हुआ था

तलाश में जब सुकूने दिल की भटक रही थी हयात अपनी
मिला यही तब वफ़ा के माथे ज़फ़ा का मोती जड़ा हुआ था

सिफ़र से आगे कहीं न जाना सिफ़र से बढ़ कर नहीं है कुछ भी
अगर ये पूछा निर्मल से तो यही बताने लगा हुआ था

Saturday, March 13, 2010

शराबी

नशे में जो सच बोल जाता शराबी
मगर राज़ सब खोल जाता शराबी

इसे चाहे माने न माने ये सच है
कि महफ़िल में रंग घोल जाता शराबी

ये बातें जो रातों की पूछें सुबह तो
सुबह बातें कर गोल जाता शराबी

मिले ज़िन्दगी में जो ग़म के ख़ज़ाने
उन्हें याद कर डोल जाता शराबी

अच्छाई बुराई ज़माने के क़िस्से
ज़ुबां से वो सब तोल जाता शराबी

अगर मयकशी की ये ख़ूबी न होती
तो युं बिक न बेमोल जाता शराबी

Sunday, March 7, 2010

वो मेरी उल्फ़त,वो है मुहब्बत

नज़ारे देखे वो आज हमने कि दिल में मस्ती छलक रही है
मिला मुझे वो उसी की ख़ुशबू फ़िज़ां में अबतक महक रही है

कहाँ से आया किधर से उतरा मुझे अभी तक समझ न आया
मगर ज़ेहन में वही सुरीली ख़री-ख़री धुन ख़नक रही है

लगे है शायद इसी तरह से वो सबको अपना पता है देता
तभी तो देखूँ मेरी ये धड़कन नई सी धुन पे धड़क रही है

मुझे तो उसकी पड़ी वो आदत न देखूँ उसको लगे न अच्छा
इसीलिये तो जिधर भी देखूँ उसी की सूरत झलक रही है

वो मेरी उल्फ़त, वो है मुहब्बत, वो चैन मेरा, वो दिल की राहत
किया उजाला, है उसने इतना हयात सारी चमक रही है

इश्क़ नशा है चढ़ा जिसे भी उसे तो निर्मल रहे न सुध-बुध
जुनूं में डूबा मुझे भी देखो ये चाल कैसी बहक रही है

Thursday, March 4, 2010

मेरे पास आया करो

या तो तुम मेरे पास आया करो
या फिर पास अपने बुलाया करो

ये दूरी नहीं अब सही जाये है
इसे तुम कभी तो मिटाया करो

अगर दे दिया है ये दिल तुझको तो
हमें युं न हरदम सताया करो

ख़ुदा है बनाता फ़लक पे रिश्ते
इन्हें मत घटाया बढ़ाया करो

बनाया है तुझको हमारे लिये
हमारी कही मान जाया करो

ख़ुदा की है मर्ज़ी हमारा मिलन
मिलन के लिये आया-जाया करो

अगर चाहो साबित हो ही जायेगा
कभी दिले दिलवर जो आया करो

सफ़र ज़िन्दगी का न तन्हा कटे
मेरे हमसफ़र बन भी जाया करो

ज़रूरत मुहब्बत की किसको नहीं
मुहब्बत मिले, सर झुकाया करो

निकल ये न जाये समय हाथ से
न मौक़े मिलन के गंवाया करो

वो निर्मल तो बिल्कुल है पागल निरा
युं बातों में उसकी न आया करो

Monday, February 15, 2010

कमाल तेरा

मेरी नज़र को नज़र न आता बता ये क्या है कमाल तेरा
ये दिल में मेरे उठ्ठे है हरदम वही पुराना सवाल तेरा

कहाँ है रहता छुपा हुआ तू यही तो सोचूँ घड़ी घड़ी मैं
भटक रहा हूँ नगर-नगर बस लिये ज़ेहन में ख़याल तेरा

तलाश तुझको किया है मैंने ले नाम तेरा जगह-जगह पे
कहीं न पाया सुराग़ कुछ भी यही है मुझको मलाल तेरा

गिने चुनों को दिखाई देता न जाने सबको तु क्यों न दिखता
जो तुझको देखें उन्हें तो जानो दिखे है हर सू जमाल तेरा

करे जो कोई तू मोजज़ा तो हो शाद मेरा जहाने उल्फ़त
नहीं करेगा कभी ये दिल फिर वही पुराना सवाल तेरा

कमी है मुझमें ये मैं भी जानूं जो चाहे तू तो कमी हटा दे
फंसा हुआ है यहाँ तो निर्मल समय का ऐसा है जाल तेरा

Thursday, February 11, 2010

फागुन

फागुन आयो रे
दिल-दिल में
उल्लास बड़ा
उत्पात
मचायो रे
फागुन आयो रे,

किरनों ने अब
धुंध को चीरा
मन्द-मन्द है
बहे समीरा,
बगिया में
भंवरा फिर वही
घात लगायो रे
फागुन आयो रे,

ऋतुओं की रानी
है फागुन
एक नहीं
बहुतेरे हैं गुन,
मिलजुल सारे
प्रेम की इक
अलख जगायो रे
फागुन आयो रे,

दिवस बड़े और
रैना छोटी
चुहल करे
नयनों की गोटी,
सजन-सजनिया
होली में मिल
रंग जमायो रे,
फागुन आयो रे,

उलझा जग का
ताना-बाना
कभी कोई
कभी कोई निशाना,
उजड़े लोगों
में दोबारा
आस जगायो रे,
फागुन आयो रे

Saturday, January 30, 2010

जिधर भी मैं देखूँ

जिधर भी मैं देखूँ दिखाई वही दे
जहाँ भी सुनूँ मैं सुनाई वही दे

नज़र वैसे मुझको वो आता नहीं है
ज़रूरत हो जब रहनुमाई वही दे

तसव्वुर में कितना भी चाहें किसी को
दिलों को मुहब्बत जुदाई वही दे

उठाये हैं हमने तो ख़ंज़र पे ख़ंज़र
अमन पर वही दे, भलाई वही दे

यहाँ से कभी कोई जाना न चाहे
मगर हर किसी को बिदाई वही दे

क़लम चाहे कितना सलीका दिखाये
क़लम को मगर रोशनाई वही दे

युं निर्मल के करने से होता नहीं है
ग़ज़ल या नज़म या रुबाई वही दे

Monday, January 25, 2010

एक और भारत

मेरे देश की याद आने लगी है
मेरे दिल पे बदरी सी छाने लगी है
कभी ना जो उतरी हैं दिल के फ़लक से
वो हर बात मुझको सताने लगी है
मेरे देश की याद आने लगी है

वो पिक्चर की बातें, वो टी वी के क़िस्से
वो क्रिकेट की दौड़ें, वो हाकी के क़िस्से
वो नुक्कड़ की बैठक, वो ढाबों की रौनक
वो टमटम की खनखन, वो काफ़ी के हिस्से
घड़ी मुड़ के फिर ना वो आने लगी है
मेरे देश की याद आने लगी है

वो अब्बा की ज़ेबों से पैसे चुराना
चुरा कर वो पैसे सिनेमा को जाना
गई रात तक घर को वापस न आना
जो आना तो फिर मार अब्बा की खाना
वही मार दिल को जलाने लगी है
मेरे देश की याद आने लगी है

दिया साथ अम्मा ने हरदम हमारा
गर वो ना होती न होता गुज़ारा
सदा उसने ममता की ठंडक से पाला
न जाने कहाँ अब वो चमके है तारा
मुझे याद उसकी रुलाने लगी है
मेरे देश की याद आने लगी है

कहाँ से कहाँ ज़िन्दगी आ चुकी है
जो सोचूँ तो इक हूक दिल में उठी है
वतन छोड़ हम परदेस आ बसे हैं
मगर देश की याद मिट ना सकी है
वो अब मेरे सपनों में आने लगी है
मेरे देश की याद आने लगी है

न मिलते यहाँ मुझको सावन के झूले
यहाँ लोग तो ख़ास रिश्ते भी भूले
यहाँ दौड़ती भागती ज़िन्दगी है
कोई तो हो जो मेरे मन को छूले
मेरी आरज़ू डगमगाने लगी है
मेरे देश की याद आने लगी है

छोड़ें अब, न इतना भी मातम मनायें
ये ग़मगीन चेहरा न सबको दिखायें
अगर मश्वरा आप निर्मल का माने
यहीं मिलके एक और भारत बनायें
नई रोशनी सर उठाने लगी है
मेरे देश की याद आने लगी है
मेरे दिल पे बदरी सी छाने लगी है

Friday, January 22, 2010

ज़िन्दगी, इक तमाशा

मैं कोई
दौलतमन्द नहीं कि
तू मेरी
दौलत के लिये ही
मेरे क़रीब
आ सके,
मैं कोई
दानिशमन्द नहीं कि
तू मेरी
अक़्ल का दामन पकड़
मुझमें
समा सके,
मैं कोई बहुत
शक्तिशाली भी नहीं कि
तू मेरी
शक्ति का लोहा मान
मेरी क़िस्मत का
दर खोल दे,
मैं कोई
जादूगर भी नहीं कि
जिसका जादू
पूरी तन्मयता से
तेरे सर चढ़
बोल दे,
फ़नकार भी नहीं
मैं कोई बहुत
पहुँचा हुआ कि
मेरा फ़न ही
कभी
खींच लाये तुझे,
अदाकार भी नहीं
मैं कोई बहुत
ऊँचे दर्जे का कि
मेरी कोई
लुभावनी अदा ही
घसीट लाये तुझे,

मैं तो फ़कत
मुसाफ़िर हूँ
उस राह का
जिसकी कोई
मंज़िल नहीं,
अंतहीन आकाश में
उड़ता हुआ एक
आवारा पंछी हूँ केवल
जिसका कोई लक्ष्य नहीं
कोई दिशा नहीं,

तो भी ये
बेमक़सद परवाज़ तो
ख़त्म हो ही
जायेगी इक दिन,
तेरे मेरे बीच की ये
कच्ची डोर भी
टूट ही जायेगी
एक न एक दिन,

मगर
तुझको पाने की
ख़्वाहिश
युं ही बीच राह
डगमगाती रहेगी,
तुम मिलोगे या नहीं
मिलोगे तो कब कहाँ
ये सोच
सोच की पगडंडियों पे
युं ही लड़खड़ाती रहेगी,

किसे दूँ
इल्ज़ाम इसका
अपनी दुर्बलता को
अपनी अग्यानता को
अपनी नीरसता को
अथवा
अपनी विवशता को
या शायद
किसी को भी नहीं,

औक़ात नहीं कि
तुझसे कुछ
पूछ सकूँ,
हैसियत भी नहीं कि
तुझ पर
कोई सवाल
दाग सकूँ,

फिर भी
एक अंतिम सवाल
कि जब तुम
ख़ुद ही
बनाते हो
ख़ुद ही
मिटाते हो
तो फिर ये सारे
तमाशे ज़िन्दगी के
हमसे क्यों
करवाते हो?
हमसे क्यों
करवाते हो?

Friday, January 15, 2010

सदा मेरे दिल से

सदा मेरे दिल से जो उठती रही
ज़ुबां उसको कहने से रुकती रही

समझ ही न पाये हैं ताज़िन्दगी
ये क्यों सबकी नज़रों में चुभती रही

रहे हम खड़े बस उन्हीं के लिये
युं ही ज़िन्दगी ख़्वाब बुनती रही

ख़ता हम मुहब्बत की कर तो गये
शमा आस की जगती बुझती रही

ज़रा पीछे मुड़, देख अय ज़िन्दगी
कि किस आरज़ू में तु लुटती रही

न दिलवर न दोस्त न हमदम कोई
भरे जग में हरदम तु छुपती रही

तेरे मुंह से निर्मल कभी ना सुना
सरे बज़्म दुनिया जो सुनती रही

Saturday, January 9, 2010

ख़ुदा जाने

ख़ुदा जाने हमसे हुई क्या ख़तायें
जो ऐसी हमें मिल रही हैं सज़ायें

बहुत हमने चाहा बहुत कर के देखा
मगर पा सके हम न उनकी वफ़ायें

नहीं कोई देखा ज़माने में अपना
ग़मे दास्तां अब ये किसको बतायें

नहीं जानते हम इशारों को उनके
ये कुछ और है या हैं उनकी अदायें

पता ही नहीं अब वो रहते कहाँ हैं
पता गर चले जा के उनको मनायें

कभी जब मिलेंगे तो पूछेंगे उनसे
ये दिल हर घड़ी क्यों दे उनको सदायें

कि हर शाख़ का रुख़ बदलने लगा है
नई से नई चल रही जो हवायें

ये निर्मल भी जाने कहाँ गुम हो जाता
वो सुनता नहीं चाहे जितना बुलायें