Monday, April 12, 2010

आतंक

आंगन में
उतरे जो साये
विस्फोटों से
दिल दहलाये,
तड़-तड़ करके
ऐसे चीख़े
घर वालों को
मौत सुलाये,

पांव बड़े
आतंक के देखे
रह गये सारे
हक्के-बक्के,
ख़ून-ख़राबा
गोला-बारी
गलियां सूनी
मरघट चहके,
पौरुषता को
कभी न भाये,

धर्म-जुर्म का
गहरा नाता
सहमी बहना
सहमा भ्राता,
आचार संहिता
दम तोड़े तो
दुर्बल कोई
न्याय न पाता,
सबको दहशत
से धमकाये,

अजगर भय का
जग को लीले
कृष्ण ही आकर
इसको कीलें,
एक नहीं कई
शिव चाहिये
जो उग्रवाद के
ज़हर को पी लें
रक्त विषैला
कहाँ से लाये
आंगन में
उतरे जो साये

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