Friday, March 19, 2010

सिफ़र से आगे

चले थे जब हम तो अंधेरे से तमाम आलम घिरा हुआ था
मगर दिया इक किसी डगर पे लिये मुहब्बत जला हुआ था

उसे पकड़ हम बढ़े थे आगे मगर झमेले बहुत मिले फिर
पता चला तब क़दम क़दम पे नया ही मंजर सजा हुआ था

यक़ीन डगमग हुआ हमारा कहीं थी फूटी हमारी क़िस्मत
समझ लगी ना हमें ज़रा भी अंधेर कैसा मचा हुआ था

ज़हर की बूंदे मिली कभी तो कभी ज़रा सी ख़ुशी से फूले
युं रिश्तों की ऊँच नीच को बस बदल बदल कर लिखा हुआ था

तलाश में जब सुकूने दिल की भटक रही थी हयात अपनी
मिला यही तब वफ़ा के माथे ज़फ़ा का मोती जड़ा हुआ था

सिफ़र से आगे कहीं न जाना सिफ़र से बढ़ कर नहीं है कुछ भी
अगर ये पूछा निर्मल से तो यही बताने लगा हुआ था

Saturday, March 13, 2010

शराबी

नशे में जो सच बोल जाता शराबी
मगर राज़ सब खोल जाता शराबी

इसे चाहे माने न माने ये सच है
कि महफ़िल में रंग घोल जाता शराबी

ये बातें जो रातों की पूछें सुबह तो
सुबह बातें कर गोल जाता शराबी

मिले ज़िन्दगी में जो ग़म के ख़ज़ाने
उन्हें याद कर डोल जाता शराबी

अच्छाई बुराई ज़माने के क़िस्से
ज़ुबां से वो सब तोल जाता शराबी

अगर मयकशी की ये ख़ूबी न होती
तो युं बिक न बेमोल जाता शराबी

Sunday, March 7, 2010

वो मेरी उल्फ़त,वो है मुहब्बत

नज़ारे देखे वो आज हमने कि दिल में मस्ती छलक रही है
मिला मुझे वो उसी की ख़ुशबू फ़िज़ां में अबतक महक रही है

कहाँ से आया किधर से उतरा मुझे अभी तक समझ न आया
मगर ज़ेहन में वही सुरीली ख़री-ख़री धुन ख़नक रही है

लगे है शायद इसी तरह से वो सबको अपना पता है देता
तभी तो देखूँ मेरी ये धड़कन नई सी धुन पे धड़क रही है

मुझे तो उसकी पड़ी वो आदत न देखूँ उसको लगे न अच्छा
इसीलिये तो जिधर भी देखूँ उसी की सूरत झलक रही है

वो मेरी उल्फ़त, वो है मुहब्बत, वो चैन मेरा, वो दिल की राहत
किया उजाला, है उसने इतना हयात सारी चमक रही है

इश्क़ नशा है चढ़ा जिसे भी उसे तो निर्मल रहे न सुध-बुध
जुनूं में डूबा मुझे भी देखो ये चाल कैसी बहक रही है

Thursday, March 4, 2010

मेरे पास आया करो

या तो तुम मेरे पास आया करो
या फिर पास अपने बुलाया करो

ये दूरी नहीं अब सही जाये है
इसे तुम कभी तो मिटाया करो

अगर दे दिया है ये दिल तुझको तो
हमें युं न हरदम सताया करो

ख़ुदा है बनाता फ़लक पे रिश्ते
इन्हें मत घटाया बढ़ाया करो

बनाया है तुझको हमारे लिये
हमारी कही मान जाया करो

ख़ुदा की है मर्ज़ी हमारा मिलन
मिलन के लिये आया-जाया करो

अगर चाहो साबित हो ही जायेगा
कभी दिले दिलवर जो आया करो

सफ़र ज़िन्दगी का न तन्हा कटे
मेरे हमसफ़र बन भी जाया करो

ज़रूरत मुहब्बत की किसको नहीं
मुहब्बत मिले, सर झुकाया करो

निकल ये न जाये समय हाथ से
न मौक़े मिलन के गंवाया करो

वो निर्मल तो बिल्कुल है पागल निरा
युं बातों में उसकी न आया करो