Sunday, March 25, 2012

ज़िन्दगी की बैटरी

अय ख़ुदा
ज़िन्दगी रोशन
करने की ख़ातिर
तूने जो टार्च
मुझे बख़्शी थी,
उसकी बैटरी न जाने कब
गुनाहों की दलदल के कारण
सीलन से भर गई
ये मुझे पता ही न चला,
और मैं
बटन पे बटन दबाता रहा
कभी इस तरफ़ तो
कभी उस तरफ़
टार्च का रुख़ घुमाता रहा,
मगर
रोशनी की इक
किरन तक न फूटी,
ज़ि्न्दगी को जिधर से भी
देखने परखने की कोशिश की
वो अंधकार में ही डूबी मिली,
और सबसे बड़ी बात
मैम ये भी भूल गया कि
इस बैटरी को दोबारा चार्ज
करने की शक्ति तो तूने
मेरे अंदर ही दबा रखी है,
आसानी से खुलने वाली
परतों तले एक
रोशनी की बड़ी गठरी
छुपा रखी है,
मैं ये भूल गया और
अपनी नासमझी के कारण
ताउम्र मैं अंधेरे से
बाहर न आ सका,
इसलिये मुक्तिपथ जैसा
कभी कोई मार्ग न पा सका,
बैटरी तो पहले ही बैठ चुकी थी
अब तो बटन भी नकारा हो चुका है,
बटन क्या
टार्च का तो हर हिस्सा ही
गया गुज़रा हो चुका है,
इसलिये तू चाहे तो
अब अपनी अमानत छीन भी सकता है
अपनी दी हुई वस्तु पे हक़ है तेरा
जब जी चाहे इसे
वापस उठा सकता है,
कदाचित
तू इस टार्च को फिर से
रिपेयर करना चाहे
या शायद इसे
कोई और ही नया
रंग रूप देना चाहे,
ये हो भी सकता है
नहीं भी हो सकता है.....

आल सीजन टायर

आल सीज़न टायर जैसे हम
घिसते रहते सड़कों पे हरदम

चलते रहना आदत है पड़ गई
थकने का अब नाम न जाने हम

सर्दी गर्मी बारिश या तूफ़ान
तन पे झेलें हम सारे मौसम

चाहे जितने सुख-दुख राहों में
गाते रहते जीवन की सरगम

गिनती के दिन होते टायर के
घबराते ना उससे फिर भी हम

तेरे हाथ में है चाभी अपनी
जिधर चलाते चल ही पड़ते हम

ड्राईवर मेरे तुम हो तो हमको
ना ही डर है ना ही कोई ग़म

ज्यों-ज्यों चलते घटता है जीवन
बदल ही देना जब जी चाहे तुम....