Tuesday, November 23, 2010

बिखरा-बिखरा सा आलम

बिखरा-बिखरा सा आलम है सब, बिखरे-बिखरे से हम
उखड़े-उखड़े से सपने हैं अब, उखड़े-उखड़े से हम

न कोई सुनने वाला है, न कोई साथी है अपना
कोई क्या जाने रहते हैं क्यों, सहमे-सहमे से हम

दीवारों से होती हैं बातें, जब भी मिलता है मौक़ा
हैं दुनिया के सागर में वर्ना, क़तरे-क़तरे से हम

इस दिल में हरदम अब तो, लगता तन्हाई का मेला
खोई सी नज़रें, सूने से घर में, टुकड़े-टुकड़े से हम

दिल के सौदे में निर्मल, घाटा न होता मुनाफ़ा कोई
जीवन में फिर क्यों हर क़दम उलझे-उलझे से हम

Tuesday, November 16, 2010

इक आरज़ू मेरी

इक आरज़ू मेरी, तेरे दिल में समा न सकी
जाने ख़ुदा अब तू ही क्यों तुझको लुभा न सकी

कोई ख़ुदाई तो नहीं मांगी कभी मैंने तेरी
फिर भी तुझे मेरी तमन्ना नज़र आ न सकी

दुनिया में सब कहते करिश्मों का मसीहा तुझे
फिर ये करिश्मा क्यों तेरी कुदरत दिखा न सकी

मैं आज तक समझा नहीं क्या बात थी मुझमें जो
अपनी मुहब्बत तेरे दिल में वो जगा न सकी

लेकर ये ग़म चलते रहे हम ज़िन्दगी भर मगर
दुनिया कभी संग अपने हमको युं चला न सकी

निर्मल तेरे अहबाब जलते हैं मगर दूर से
उनको कभी तेरी मुहब्बत पास ला न सकी

Tuesday, November 9, 2010

दूर हूँ मैं

दूर हूँ मैं तुझसे, फिर भी पास हूँ
ग़म न कर तू मैं तेरे ही साथ हूँ

सुन रहा हूँ दोस्त, पर ये सच नहीं
लोग कहते हैं कि गुज़री बात हूँ

सोच न अब दिल जो चाहे कर ले तू
हर घड़ी हर पल मै नई आस हूँ

ये हक़ीकत आज भी है मान तू
मैं मुहब्बत से भरा इक राग हूँ

देर न कर आ मेरे तू पास आ
मैं वही जो तेरे दिल का साज़ हूँ

वक़्त की दहलीज़ पर निर्मल खड़ा
तू इधर तो मैं उधर आबाद हूँ

Wednesday, November 3, 2010

दीपावली की शुभकामनाओं के साथ

सारा शहर दुल्हन बना ख़ुशियाँ उतारें आरती
चन्दा नहीं फिर भी लगे पुर-क़ैफ़ बिखरी चाँदनी

आओ कि हम देखें ज़रा क्या धूम मचती कू-ब-कू
आतिश चले लड़ियाँ सजें छंटने लगी सब तीरगी

ऐसा लगे हर सू ख़ुदाई नूर है फैला हुआ
मख़्मूर सब तन-मन हुआ खिलने लगी मन की कली

मिलते रहें दिल-दिल से तो चमका करे हर ज़िन्दगी
जलते रहें दीपक सदा क़ायम रहे ये रौशनी

मन का दिया रौशन हो जब जाते बिसर दुनिय के ग़म
बचता न कुछ भी शेष फिर बचती फ़कत दीवानगी

पैग़ाम देता है यही, त्योहार ये इक बार फिर
हम दोस्ती में डूब जायें भूल कर सब दुश्मनी

हमदम बनें, मिल कर चलें, सपने बुनें, नग़्मे लिखें
जीवन डगर पे रोज़ हम छेड़ें नई इक रागिनी

माना चमन में हर तरफ़ माहौल है बिगड़ा हुआ
फिर भी ख़ुदा पे रख यक़ीं दिखलायेगा जादूगरी

बाहों में बाहें डाल कर, दुख-दर्द सारे भूल कर
परिवार संग निर्मल मेरे तू युं मना दीपावली