Monday, November 28, 2011

दिले-गुलशन सजा लेते

मेरी दुनिया में आ जाते नई दुनिया बना लेते
अगर तुम साथ होते तो ज़माने को झुका लेते

हवा का रुख़ बदल जाता समय की धार थम जाती
मुहब्बत से सितारों को ज़मीं पे हम बुला लेते

ख़ुशी की बात होती या ग़मों की दास्तां होती
ज़रा तुमसे सुना करते ज़रा अपनी सुना लेते

कभी ख़ामोश हो लेते कभी हम गुनगुना लेते
कभी मदहोश होकर हम तुझे तुमसे चुरा लेते

दीवाने हम हुये रहते दीवारों पर लिखा करते
कभी जो रूठ जाते तुम तभी तुमको मना लेते

जो सपनों से उतर कर तुम हक़ीक़त में चले आते
तो फिर हम भी मुहब्बत से दिले-गुलशन सजा लेते

Friday, November 25, 2011

ख़ुशियाँ

बड़ी मुश्किल से मिलती हैं ज़माने में कभी खुशियाँ
सम्हालो प्यार से इनको ख़ुदा से जो मिली ख़ुशियाँ

कभी तो चाँद बन के ईद का उतरी तेरे आँगन
दिया बन के दिवाली का कभी घर में सजी ख़ुशियाँ

ये माना कि ज़माने को ग़मों ने घेर रक्खा है
ज़रा घेरे से निकलो तो दिखे दर पे खड़ी खुशियाँ

जो मिल-जुल के रहें हम-सब यहाँ इस दौर में अपने
तो ये जानो कि हम-सब की संवारे ज़िन्दगी ख़ुशियाँ

कभी सावन चला आता कभी पतझड़ नज़र आता
जो देखोगे तो हर मौसम के पीछे हैं छुपी ख़ुशियाँ

न शिकवे हों, शिकायत हो किसी से तुमको अब निर्मल
जो तुम अपने में झांकोगे नज़र तब आयेंगी ख़ुशीयाँ

Tuesday, November 15, 2011

ख़ुदा ही हरदम

ख़ुदा ही हरदम

मैं चल पड़ा अब तेरे सहारे
पड़ा था कबसे कहीं किनारे

कहीं न हरकत कहीं न हलचल
जमे हुये थे क़दम हमारे

बन्द घड़ी हो गया था जीवन
सुने न कोई किसे पुकारे

कभी मुझे कुछ नज़र न आया
दिखे जो तुम तो दिखे नज़ारे

कहीं न जाने देना है तुझको
बने हो अब तो सनम हमारे

तेरी तमन्ना तेरी इबादत
यही मुक़द्दर करे इशारे

खुदा ही हरदम ख़ुदा ही हरपल
संग हमारे संग तुम्हारे

Monday, November 14, 2011

वक्त की तलवार

वक्त की
दोधारी तलवार तले
मन का परकटा पंछी
दम तोड़ने को है,
ज्यों
मांस का एक
बेजान लोथड़ा
तराजू पे निरीह पड़ा
बिकने को है,
यहाँ
हर किसी ने
देखी है शक़्ल
हर किसी ने
आँकी है अक़्ल,
शायद ही कोई
उतर पाया हो
मन के भीतर
शायद ही किसी को
भाया हो
ये प्यारा नगर,
यूं तो
आसान भी नहीं होती
दिल की इबारत
वही पढ़ पाता है इसे
जिसपे हो कोई इनायत,
मगर अब तो
वही क़िस्सा वही बात
दोहराने को है
सफ़र हो चला तमाम सब
गाड़ी का पहिया अब
थम जाने को है...

Tuesday, November 8, 2011

ये हो नहीं सकता

जुदा तुमसे रहूँ मैं इक घड़ी ये हो नहीं सकता
अगर ऐसा हुआ तो फिर कभी मैं सो नहीं सकता

न जाने किस दुआ बदले ख़ुदा ने तुझको भेजा है
मुझे लगता जो देखे ख़्वाब थे उनका नतीजा है
क़सम तेरी किसी कीमत तुझे अब खो नहीं सकता

ज़रा सा दूर भी जाओ तो मेरा दिल धड़कता है
रहो नज़दीक मेरे हर घड़ी हर पल ये कहता है
कभी मैं सोचता भी वो नहीं, जो हो नहीं सकता

मुहब्बत एक ख़ुशबू है कभी जो मिट नहीं सकती
जवां रहती ये सदियों तक दिलों से हट नहीं सकती
मुहब्बत के बराबर तो कोई भी हो नहीं सकता
जुदा तुमसे रहूँ मैं इक घड़ी ये हो नहीं सकता.....

Saturday, November 5, 2011

बन खिलौना

बन खिलौना
इस हाथ से उस हाथ
मैं बिकती रही
चाहत से ममता
के बीच ज़िन्दगी
मेरी बंटती रही,

प्रेम-बीज
रोपने की कोशिश में
हाथ छिल गये,
मन को
संभालने की आरज़ू में
रिश्ते हिल गये,
क़दम-क़दम और
घड़ी-घड़ी ख़ुशी मेरी
लुटती रही,

हौसला कर
कभी कुछ करने की
मैने जो ठानी,
बेड़ियां पैरों की
तभी बोलीं
मत कर नादानी,
मौसम से मौसम
जनम से जनम
यूं ही मैं
मिटती रही,

जिसने जैसा चाहा
वैसा ही
नचाया है मुझको,
नाम किसका लूं
यहाँ हर किसीने
सताया है मुझको,
नस-नस में मेरी
सर्वदा चिंगारी एक
घुटती रही,
बन खिलौना
इस हाथ से उस हाथ मैं
बिकती रही...