तोड़ कर दिल मेरा जाओगे तुम कहाँ
गर चले तुम गये आओगे फिर यहाँ
दिल मेरा बन गया घर तेरा जाने जां
छोड़ घर चैन तुम पाओगे फिर कहाँ
छोड़ते हम नहीं थाम कर हाथ फिर
जान लो तुम भी ये जानते सब यहाँ
प्यार जो कर लिया, कर लिया कर लिया
झांकते फिर नहीं हम यहाँ औ वहाँ
मिल गये तुम अगर तो समझ लेंगे हम
पा लिया है ख़ुदा, पा लिया है जहाँ
दो दिलों के मेल को देखता जब ख़ुदा
झूमता नाचता वो यहाँ से वहाँ
प्यार ने कर दिये साथ हम और तुम
ख़ुश है निर्मल वर्ना तुम कहाँ हम कहाँ
Friday, October 29, 2010
Friday, October 22, 2010
जाने कब तुम आओगे साजन
जाने कब तुम आओगे साजन
अपना रूप दिखाओगे साजन
जाने कब तुम...
नदी गीत की सूख चली है
छन्द की भाषा रूठ चली है
ग़ज़ल को मिलता नहीं रास्ता
नज़्म बिचारी डूब चली है
कब तुम पार लगाओगे साजन
जाने कब तुम...
पल भर का ये साथ चले ना
बहुत दूर से प्यार पले ना
अब आना तो जम कर आना
गर्म हवा से दाल गले ना
कब तक यूं तरसाओगे साजन
जाने कब तुम...
कौन सी मैं तरक़ीब लगाऊँ
राह कौन सी मैं अपनाऊँ
दुर्बल मन को सूझे कुछ ना
तुझको कैसे पास ले आऊँ
कब मुझमें घुल जाओगे साजन
जाने कब तुम...
यूं दिल तेरा कोई सख़्त नहीं
पर पास मेरे भी वक़्त नहीं
सूरज-चाँद बराबर रहते
हम इतने पर चुस्त नहीं
आकर कब बहलाओगे साजन
जाने कब तुम...
तुम आओ तो हम-तुम खेलें
भर तुझको बाहों में ले लें
तेरी नर्म हथेली पर हम
अपने फिर जज़बात उड़ेलें
तब हमको मिल जाओगे साजन
ख़ुश हमको कर जाओगे साजन
जाने कब तुम आओगे साजन...
अपना रूप दिखाओगे साजन
जाने कब तुम...
नदी गीत की सूख चली है
छन्द की भाषा रूठ चली है
ग़ज़ल को मिलता नहीं रास्ता
नज़्म बिचारी डूब चली है
कब तुम पार लगाओगे साजन
जाने कब तुम...
पल भर का ये साथ चले ना
बहुत दूर से प्यार पले ना
अब आना तो जम कर आना
गर्म हवा से दाल गले ना
कब तक यूं तरसाओगे साजन
जाने कब तुम...
कौन सी मैं तरक़ीब लगाऊँ
राह कौन सी मैं अपनाऊँ
दुर्बल मन को सूझे कुछ ना
तुझको कैसे पास ले आऊँ
कब मुझमें घुल जाओगे साजन
जाने कब तुम...
यूं दिल तेरा कोई सख़्त नहीं
पर पास मेरे भी वक़्त नहीं
सूरज-चाँद बराबर रहते
हम इतने पर चुस्त नहीं
आकर कब बहलाओगे साजन
जाने कब तुम...
तुम आओ तो हम-तुम खेलें
भर तुझको बाहों में ले लें
तेरी नर्म हथेली पर हम
अपने फिर जज़बात उड़ेलें
तब हमको मिल जाओगे साजन
ख़ुश हमको कर जाओगे साजन
जाने कब तुम आओगे साजन...
Tuesday, October 19, 2010
वरदान
दे हमें वरदान दाता मन में सबके प्यार हो
इस जहाँ में हर तरफ़ फिर प्यार का संसार हो
फिर न उजड़े कोई ग़ुलशन घर न सूना हो कोई
फिर न तरसे दिल किसी का, हो न तन्हा फिर कोई
ज़िन्दगी में सबकी हरदम बस तेरा आधार हो
ना जले आँचल कभी फिर, ना बहे काजल कभी
दोस्त बनके हम रहें बस, ना बने दुश्मन कभी
जो मिले साया तेरा तो सबका बेड़ा पार हो
तोड़े से भी टूटेंगे ना चाहे जो चालें चले
हम रहेंगे उसके हरदम जो मुहब्बत से मिले
ले लिया जब नाम तेरा दूर सब तक़रार हो
कर दे दाता हम पे रहमत जग बने जन्नत यही
प्यार का मौसम रहे बस, मान ले मन्नत यही
और ना कुछ चाहिये फिर बस तेरा दीदार हो
इस जहाँ में हर तरफ़ फिर प्यार का संसार हो
फिर न उजड़े कोई ग़ुलशन घर न सूना हो कोई
फिर न तरसे दिल किसी का, हो न तन्हा फिर कोई
ज़िन्दगी में सबकी हरदम बस तेरा आधार हो
ना जले आँचल कभी फिर, ना बहे काजल कभी
दोस्त बनके हम रहें बस, ना बने दुश्मन कभी
जो मिले साया तेरा तो सबका बेड़ा पार हो
तोड़े से भी टूटेंगे ना चाहे जो चालें चले
हम रहेंगे उसके हरदम जो मुहब्बत से मिले
ले लिया जब नाम तेरा दूर सब तक़रार हो
कर दे दाता हम पे रहमत जग बने जन्नत यही
प्यार का मौसम रहे बस, मान ले मन्नत यही
और ना कुछ चाहिये फिर बस तेरा दीदार हो
Saturday, October 16, 2010
कोई तो ऐसा हो जो
कोई तो ऐसा हो जो समझे
मुझको जग में अपना
कोई तो ऐसा हो जोचाहे
दिल मेरे में बसना...
आँखों का बस नूर बने वो
बने भोर का तारा,
क़दमों की बस चाल बने वो
बने लहु का धारा,
कोई तो ऐसा हो जो कर दे
शीतल मेरा तपना...
प्यार के रिश्ते में बंध पाऊँ
ऐसी न तक़दीर रही,
ना ही रांझा बन पाया मैं
ना ही कोई हीर रही,
कोई तो ऐसा हो जो पूछे
प्रेम-प्याला चखना ?
जीवन यूं ही लुढ़क चला अब
जैसे हो कच्चा कोठा,
भागे-भागे उम्र है भागी
रहा मुक़द्दर सोता,
कोई तो ऐसा हो जो बोले
संग तेरे मैं चलना...
दूर बादलों के आंगन जा
अपना महल बनाऊँ,
अपने मन की लेकर कलियां
उसको रोज़ सजाऊँ,
कोई तो ऐसा हो जो कर दे
पूरा मेरा सपना...
सरगम बिन संगीत बहे ना
न धड़के गीत का सीना,
बोल मीत के साथ नहीं तो
मरण बराबर जीना,
कोई तो ऐसा हो जो कह दे
नाम तेरा ही जपना...
मुझको जग में अपना
कोई तो ऐसा हो जोचाहे
दिल मेरे में बसना...
आँखों का बस नूर बने वो
बने भोर का तारा,
क़दमों की बस चाल बने वो
बने लहु का धारा,
कोई तो ऐसा हो जो कर दे
शीतल मेरा तपना...
प्यार के रिश्ते में बंध पाऊँ
ऐसी न तक़दीर रही,
ना ही रांझा बन पाया मैं
ना ही कोई हीर रही,
कोई तो ऐसा हो जो पूछे
प्रेम-प्याला चखना ?
जीवन यूं ही लुढ़क चला अब
जैसे हो कच्चा कोठा,
भागे-भागे उम्र है भागी
रहा मुक़द्दर सोता,
कोई तो ऐसा हो जो बोले
संग तेरे मैं चलना...
दूर बादलों के आंगन जा
अपना महल बनाऊँ,
अपने मन की लेकर कलियां
उसको रोज़ सजाऊँ,
कोई तो ऐसा हो जो कर दे
पूरा मेरा सपना...
सरगम बिन संगीत बहे ना
न धड़के गीत का सीना,
बोल मीत के साथ नहीं तो
मरण बराबर जीना,
कोई तो ऐसा हो जो कह दे
नाम तेरा ही जपना...
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