Tuesday, June 30, 2009

गर्मी के दिन

आते हैं जब गर्मी के दिन
आ जाते तब छुट्टी के दिन
नाचे गायें, धूम मचायें
अच्छे कितने, मस्ती के दिन
आते हैं जब गर्मी के दिन...

दूर पहाड़ों पर जो जायें
कुदरत का सब मज़ा उठायें
ठंडे मौसम में जब घूमें
गर्म हवा फिर भूल ही जायें
क़ुल्फ़ी ठंडी खाने के दिन
आते हैं जब गर्मी के दिन...

जेठ तपे है, आम पके है
सड़कें रो रो कर पिघले हैं
पोंछ पसीना लाल हुआ तन
पीयें बहुत, न प्यास मिटे है
कटती रातें तारे गिन-गिन
आते हैं जब गर्मी के दिन...

आषाढ़ के पीछे हंसता सावन
सर्दी-गर्मी कुदरत का तन
क्यूं घबराये मेरे साथी
सुख-दुख से बनता है जीवन
पंछी प्यासे गाते निश-दिन
आते हैं जब गर्मी के दिन...

आंखों में सूरज है चुभता
तन्हाई में सीना तपता
रिश्ते सारे टूट हैं जाते
साथ बदन के जी है जलता
ऐसे होते मुफ़लिस के दिन
आते हैं जब गर्मी के दिन...

दुनिया में बारूदी गर्मी
हिंसा औ बदले की गर्मी
इन्सा से अब इन्सा लड़ता
गई किधर वो प्यारी गर्मी
कौन भुलाये वैसे दिन
आते हैं जब गर्मी के दिन
आ जाते तब छुट्टी के दिन....

Sunday, June 28, 2009

जायें तो कहाँ जायें

भरा है दिल भरी हैं आँखे, जायें तो कहाँ जायें
न हैं अपने न ही बेगाने, जायें तो कहाँ जायें

कभी जिनके लिये था, हमने छोड़ा ये जहां सारा
नज़र वो अब नहीं हैं आते, जायें तो कहाँ जायें

सिवा अन्धेरे के कुछ भी नहीं है दिल के आंगन में
बची क़िस्मत में तन्हा रातें, जायें तो कहाँ जायें

किसी बाज़ार में मिलता नहीं ये प्यार का तुहफ़ा
बता दे कोई इसको पाने, जायें तो कहाँ जायें

बदल के रख दिया उस बेवफ़ा ने दिल मुहब्बत का
सुनाने दिल के ये अफ़साने, जायें तो कहाँ जायें

कटेंगे किस तरह दिन ज़िन्दगी के अब तेरे निर्मल
ग़मे फ़ुरकत में दिल बहलाने, जायें तो कहाँ जायें

Tuesday, June 16, 2009

यूं चला कारवां ज़िन्दगी का

यूं चला कारवां ज़िन्दगी का अपना
कि धूल में लिपटा रहा तन-बदन अपना
यूं चला कारवां ज़िन्दगी का अपना...

क़दम-दर-क़दम, शहर-दर-शहर
ख़्वाब-दर-ख़्वाब, लहर-दर-लहर
यूं चला कारवां ज़िन्दगी का अपना...

सबकुछ मिला, फिर भी रहा ये गिला
जुस्तजू रही जिसकी वो कभी न मिला,
फ़लक़ पे उड़ती तमन्नाओं ने
ज़मीं पे न डाली नज़र
दिल में घुटती ख्वाहिशों को कभी
मिल सकी न कोई सहर,
ख़ूबसूरत किसी दिल में कभी
घर-बार न बन सका अपना
यूं चला कारवां ज़िन्दगी का अपना...

चलते रहे,
नाकाम हसरतों की उठाये सलीब
न ही कोई दूर था हमसे
और न ही कोई बहुत क़रीब,
रुकती-रुकती सी अब
रुकने लगी है सांस
अब न ज़िन्दा है कोई उम्मीद
और न ही बची कोई आस,
रहा दर-बदर का मुहताज
ये प्यारा सा नसीबा अपना
यूं चला कारवां ज़िन्दगी का अपना...

कोई कुछ क़दम आगे
तो कोई कुछ क़दम पीछे चला,
साथ-साथ तो मगर कोई-कोई ही चला
और दिल के बराबर तो कोई भी न चला,
अपने क़दमों की लड़खड़ाहट
अपनी ही करनी का नतीजा बनी
उलझनें रहीं इतनी कि ज़िन्दगी
हर गाम पे इक मरहला बनी,
जिसका न था जवाब
क्यों ज़ुबां से निकलता रहा
बार-बार वो सवाल अपना
यूं चला कारवां ज़िन्दगी का अपना...

मतलब को समझा है इश्क़
लगाव को समझ बैठा प्रेम
मोह को बसाये रखा दिल में फ़कत
ग़ुरूर ही रहा सदा ज़िन्दगी का नेम,
जो बुना वो ही पहना
जो चुना वो ही पड़ा सहना
है मुश्किल बहुत मगर यूं
अपने ही घर में अजनबी सा रहना,
साथ यूं ही होता हो शायद सबके मगर
यहाँ तो यही हाल रहा सदा अपना
यूं चला कारवां ज़िन्दगी का अपना
कि धूल में लिपटा रहा तन-बदन अपना
यूं चला कारवां ज़िन्दगी का.....

Friday, June 12, 2009

खुद को हमसे जो दूर रखा

ख़ुद को हमसे जो दूर रखा
हम को कितना मजबूर रखा

तो भी हमने दिल में अपने
रोशन चाहत का नूर रखा

अपनी बातें तू ही जाने
ऐसा तूने दस्तूर रखा

किससे बोलें दिल की बातें
इस दिल में तो नासूर रखा

ये कैसा दीवानापन है
दिन रात नशे में चूर रखा

पागल निर्मल बोले, दिल में
बस तेरा नाम ज़रूर रखा

Sunday, June 7, 2009

प्यार का रंग न बदला

जग बदला है
मौसम बदला
क़ुदरत का हर
पहलू बदला,
मगर, प्यार का
रंग न बदला.....

आज भी पंछी
जब हैं गाते
बात प्रेम की
वो समझाते,
झर-झर झरने
जब हैं बहते
गीत प्रीत के
वो भी गाते,

जिधर भी देखो
सब-कुछ बदला
जीने का हर
ढंग है बदला,
मगर, प्यार का
रंग न बदला.....

पुष्प प्रेम के
जब हैं खिलते
तन-मन इक-
दूजे से मिलते,
प्रीत की ख़ुशबू
सुध-बुध खोये
जब संदेश
दिलों के मिलते,

तन के कितने
रूप हैं बदले
मन का रूप
भी बदला,
मगर, प्यार का
रंग न बदला.....

प्यार बिना कोई
बात बने न
प्यार बिना इक
रात कटे न,
प्यार ख़ुदा का
नूर है ऐसा
इक पल भी जो
दूर हटे न,

इन्सा ने चेहरा
तो बदला
चेहरे का हर
अंग है बदला,
मगर, प्यार का
रंग न बदला.....

प्यार बदल
गर जायेगा
जग में क्या
रह जायेगा,
आस की कलियां
मुरझायेंगी
ख़्वाब सुहाना
मर जायेगा,

दौर पुराना
वक्त का बदला
सबका तौर-
तरीका बदला,
मगर, प्यार का
रंग न बदला

जग बदला है
मौसम बदला
क़ुदरत का हर
पहलू बदला,
मगर, प्यार का
रंग न बदला.....

Tuesday, June 2, 2009

वो मुझे आजमाता रहा

मैं उसे, वो मुझे आजमाता रहा
जब कभी सामने मेरे आता रहा

भेद उसका समझ आ न सके मुझे
इस तरह के खेल वो रचाता रहा

सेर था मैं अगर, वो सवा सेर था
हर दफ़ा वो मुझे ही नचाता रहा

साथ मेरे यही है हुआ हर घड़ी
ताउम्र भागता या भगाता रहा

मौक़े उसने दिये संभलने के बहुत
आँख मैं ज़िन्दगी से चुराता रहा

हारने जीतने का जो पूछा सबब
फ़ैसले से सदा भाग जाता रहा

ढूंढने जब उसे मैं निकला कभी
ख़ुद को जाने कहाँ वो छुपाता रहा

देखे जो दिल फ़कीरों के हमने कभी
वो वहीं बैठ कर मुस्कुराता रहा

जब कभी वो मिला बन के रहबरे ख़ुदा
मैं उसे जोड़ता या घटाता रहा

फ़लसफ़ा ज़िन्दगी का बहुत है अजब
धूप या छांव से दिल दुखाता रहा

हो चले हाथ निर्मल के तो अब खड़े
ज़िन्दगी भर युं ही सर झुकाता रहा