आते हैं जब गर्मी के दिन
आ जाते तब छुट्टी के दिन
नाचे गायें, धूम मचायें
अच्छे कितने, मस्ती के दिन
आते हैं जब गर्मी के दिन...
दूर पहाड़ों पर जो जायें
कुदरत का सब मज़ा उठायें
ठंडे मौसम में जब घूमें
गर्म हवा फिर भूल ही जायें
क़ुल्फ़ी ठंडी खाने के दिन
आते हैं जब गर्मी के दिन...
जेठ तपे है, आम पके है
सड़कें रो रो कर पिघले हैं
पोंछ पसीना लाल हुआ तन
पीयें बहुत, न प्यास मिटे है
कटती रातें तारे गिन-गिन
आते हैं जब गर्मी के दिन...
आषाढ़ के पीछे हंसता सावन
सर्दी-गर्मी कुदरत का तन
क्यूं घबराये मेरे साथी
सुख-दुख से बनता है जीवन
पंछी प्यासे गाते निश-दिन
आते हैं जब गर्मी के दिन...
आंखों में सूरज है चुभता
तन्हाई में सीना तपता
रिश्ते सारे टूट हैं जाते
साथ बदन के जी है जलता
ऐसे होते मुफ़लिस के दिन
आते हैं जब गर्मी के दिन...
दुनिया में बारूदी गर्मी
हिंसा औ बदले की गर्मी
इन्सा से अब इन्सा लड़ता
गई किधर वो प्यारी गर्मी
कौन भुलाये वैसे दिन
आते हैं जब गर्मी के दिन
आ जाते तब छुट्टी के दिन....
Tuesday, June 30, 2009
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क्या याद किया है..बहुत खूब!!
ReplyDeleteदुनिया में बारूदी गर्मी
ReplyDeleteहिंसा औ बदले की गर्मी
इन्सा से अब इन्सा लड़ता
गई किधर वो प्यारी गर्मी
कौन भुलाये वैसे दिन
आते हैं जब गर्मी के दिन
आ जाते तब छुट्टी के दिन....
बहुत खूब सही कहा है