Saturday, November 5, 2011

बन खिलौना

बन खिलौना
इस हाथ से उस हाथ
मैं बिकती रही
चाहत से ममता
के बीच ज़िन्दगी
मेरी बंटती रही,

प्रेम-बीज
रोपने की कोशिश में
हाथ छिल गये,
मन को
संभालने की आरज़ू में
रिश्ते हिल गये,
क़दम-क़दम और
घड़ी-घड़ी ख़ुशी मेरी
लुटती रही,

हौसला कर
कभी कुछ करने की
मैने जो ठानी,
बेड़ियां पैरों की
तभी बोलीं
मत कर नादानी,
मौसम से मौसम
जनम से जनम
यूं ही मैं
मिटती रही,

जिसने जैसा चाहा
वैसा ही
नचाया है मुझको,
नाम किसका लूं
यहाँ हर किसीने
सताया है मुझको,
नस-नस में मेरी
सर्वदा चिंगारी एक
घुटती रही,
बन खिलौना
इस हाथ से उस हाथ मैं
बिकती रही...

2 comments: