आल सीज़न टायर जैसे हम
घिसते रहते सड़कों पे हरदम
चलते रहना आदत है पड़ गई
थकने का अब नाम न जाने हम
सर्दी गर्मी बारिश या तूफ़ान
तन पे झेलें हम सारे मौसम
चाहे जितने सुख-दुख राहों में
गाते रहते जीवन की सरगम
गिनती के दिन होते टायर के
घबराते ना उससे फिर भी हम
तेरे हाथ में है चाभी अपनी
जिधर चलाते चल ही पड़ते हम
ड्राईवर मेरे तुम हो तो हमको
ना ही डर है ना ही कोई ग़म
ज्यों-ज्यों चलते घटता है जीवन
बदल ही देना जब जी चाहे तुम....
Sunday, March 25, 2012
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