न जाने किस जहां से आई हो तुम
मुहब्बत साथ अपने लाई हो तुम
बड़ा वीरान था दिल का चमन ये
बहारों के ख़ज़ाने लाई हो तुम
बहुत ख़ामोश थे जज़बात मेरे
दिले बेताब जो टकराई हो तुम
सुरीली धुन मुहब्बत की बजी तब
सुरों में जबसे ढल के आई हो तुम
मुझे तो हर लम्हा अच्छा लगे अब
समा ये ख़ूबसूरत लाई हो तुम
कभी दिल भर न पाये वो हसीं इक
नई सौग़ात लेकर आई हो तुम
जो पाया तुझको तो लगने लगा ये
कि बस मेरे लिये ही आई हो तुम
वक्त की शाख़ों पे गुल खिल पड़े हैं
मुहब्बत के वो पल-पल लाई हो तुम
पता ही ना चला कब ज़िन्दगी ये
हसीं इक मोड़ पे ले आई हो तुम
बदल तेरा न कोई भी मिला है
दिले आकाश पे युं छाई हो तुम
खुदा से मांगते थे रात दिन जो
वो सब मांगी मुरादें लाई हो तुम
अंधेरों में भटकती ज़िन्दगी थी
ख़ुदाई नूर लेकर आई हो तुम
Saturday, April 24, 2010
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waah bahut khoob....
ReplyDeleteखूबसूरत ग़ज़ल ... हर शेर सुभान अल्ला ...
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