Thursday, June 3, 2010

मौत

खेल कैसा ये तूने बनाया ख़ुदा
मौत ने ज़िन्दगी को हराया ख़ुदा

आने जाने की दौडें लगीं हर तरफ़
तूने अच्छा ये चक्कर चलाया ख़ुदा

ना ये दस्तक है देती, न देती सदा
बिन बुलाये इसे कौन लाया ख़ुदा

ख़ुद बनाता है तू, ख़ुद मिटाता है तू
भेद गहरा समझ में न आया ख़ुदा

वो जो झुकते नहीं थे कहीं भी कभी
वक़्त के ज़ोर उनको झुकाया खुदा

जिनकी पलकों पे सपने सजे बेखबर
नींद गहरी में उनको सुलाया खुदा

आज ग़मगीं जो चेहरा ये निर्मल का है
नाम उसका भी लगता है आया खुदा

1 comment:

  1. खूब्सूरत गज़ल , जज़्बाती शेर, कमाल की पेशकश.मुबारकबाद क़ुबूल किजिये.

    ReplyDelete