खेल कैसा ये तूने बनाया ख़ुदा
मौत ने ज़िन्दगी को हराया ख़ुदा
आने जाने की दौडें लगीं हर तरफ़
तूने अच्छा ये चक्कर चलाया ख़ुदा
ना ये दस्तक है देती, न देती सदा
बिन बुलाये इसे कौन लाया ख़ुदा
ख़ुद बनाता है तू, ख़ुद मिटाता है तू
भेद गहरा समझ में न आया ख़ुदा
वो जो झुकते नहीं थे कहीं भी कभी
वक़्त के ज़ोर उनको झुकाया खुदा
जिनकी पलकों पे सपने सजे बेखबर
नींद गहरी में उनको सुलाया खुदा
आज ग़मगीं जो चेहरा ये निर्मल का है
नाम उसका भी लगता है आया खुदा
Thursday, June 3, 2010
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खूब्सूरत गज़ल , जज़्बाती शेर, कमाल की पेशकश.मुबारकबाद क़ुबूल किजिये.
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