हर मुसाफ़िर को मिले मंज़िल ज़रूरी तो नहीं
चलती कश्ती को मिले साहिल ज़रूरी तो नहीं
जिनके ख़ातिर धड़कता है दिल अपना हर घड़ी
अपने ख़ातिर धड़के उनका दिल ज़रूरी तो नहीं
चाहने वाले बहुत मिल जाते हैं दुनिया में पर
हर शख़्स में फड़कता हो दिल ज़रूरी तो नहीं
टूट जाये दिल मुहब्बत में तो दोबारा वहाँ
फिर सजे अरमानों की महफ़िल ज़रूरी तो नहीं
हम जिसे दिल की तबाही का देते इल्ज़ाम हैं
हो हक़ीक़त में वही क़ातिल ज़रूरी तो नहीं
दिले आस्मां पे लिखा था नाम जो हमने कभी
याद आता हो उसे निर्मल ज़रूरी तो नहीं
Sunday, July 11, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
टूट जाये दिल मुहब्बत में तो दोबारा वहाँ
ReplyDeleteफिर सजे अरमानों की महफ़िल ज़रूरी तो नहीं
-बहुत उम्दा कहा!
in sheron mey ek sambhavana dikh rahi hai.swagat hai aapka.
ReplyDelete