Sunday, July 11, 2010

ज़रूरी तो नहीं

हर मुसाफ़िर को मिले मंज़िल ज़रूरी तो नहीं
चलती कश्ती को मिले साहिल ज़रूरी तो नहीं

जिनके ख़ातिर धड़कता है दिल अपना हर घड़ी
अपने ख़ातिर धड़के उनका दिल ज़रूरी तो नहीं

चाहने वाले बहुत मिल जाते हैं दुनिया में पर
हर शख़्स में फड़कता हो दिल ज़रूरी तो नहीं

टूट जाये दिल मुहब्बत में तो दोबारा वहाँ
फिर सजे अरमानों की महफ़िल ज़रूरी तो नहीं

हम जिसे दिल की तबाही का देते इल्ज़ाम हैं
हो हक़ीक़त में वही क़ातिल ज़रूरी तो नहीं

दिले आस्मां पे लिखा था नाम जो हमने कभी
याद आता हो उसे निर्मल ज़रूरी तो नहीं

2 comments:

  1. टूट जाये दिल मुहब्बत में तो दोबारा वहाँ
    फिर सजे अरमानों की महफ़िल ज़रूरी तो नहीं

    -बहुत उम्दा कहा!

    ReplyDelete
  2. in sheron mey ek sambhavana dikh rahi hai.swagat hai aapka.

    ReplyDelete