Wednesday, November 3, 2010

दीपावली की शुभकामनाओं के साथ

सारा शहर दुल्हन बना ख़ुशियाँ उतारें आरती
चन्दा नहीं फिर भी लगे पुर-क़ैफ़ बिखरी चाँदनी

आओ कि हम देखें ज़रा क्या धूम मचती कू-ब-कू
आतिश चले लड़ियाँ सजें छंटने लगी सब तीरगी

ऐसा लगे हर सू ख़ुदाई नूर है फैला हुआ
मख़्मूर सब तन-मन हुआ खिलने लगी मन की कली

मिलते रहें दिल-दिल से तो चमका करे हर ज़िन्दगी
जलते रहें दीपक सदा क़ायम रहे ये रौशनी

मन का दिया रौशन हो जब जाते बिसर दुनिय के ग़म
बचता न कुछ भी शेष फिर बचती फ़कत दीवानगी

पैग़ाम देता है यही, त्योहार ये इक बार फिर
हम दोस्ती में डूब जायें भूल कर सब दुश्मनी

हमदम बनें, मिल कर चलें, सपने बुनें, नग़्मे लिखें
जीवन डगर पे रोज़ हम छेड़ें नई इक रागिनी

माना चमन में हर तरफ़ माहौल है बिगड़ा हुआ
फिर भी ख़ुदा पे रख यक़ीं दिखलायेगा जादूगरी

बाहों में बाहें डाल कर, दुख-दर्द सारे भूल कर
परिवार संग निर्मल मेरे तू युं मना दीपावली

4 comments:

  1. सुन्दर रचना है!
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    प्रेम से करना "गजानन-लक्ष्मी" आराधना।
    आज होनी चाहिए "माँ शारदे" की साधना।।
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    आप खुशियों से धरा को जगमगाएँ!
    दीप-उत्सव पर बहुत शुभ-कामनाएँ!!

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  2. दीपावली की समस्त परिवार को हार्दिक शुभकामनायें। गज़ल बहुत अच्छी लगी। धन्यवाद।

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  3. सुन्दर अभिव्यक्ति...
    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं...

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  4. बहुत ही खूबसूरत भाव.........

    दीपावली पर्व की आपको हार्दिक शुभकामनाएं...

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