Thursday, December 23, 2010

कोई दुखड़ों में

कोई दुखड़ों में जीता है तो कोई मुस्कुराता है
ख़ुदा भी हर घड़ी हर पल नये जलवे दिखाता है

ख़ुशी से कोई लिपटा है दुखों में कोई डूबा है
किसी को दूर ले जाता किसी को पास लाता है

कहीं से तोड़ देता है कहीं वो जोड़ देता है
कोई तो छूट जाता है कोई बस टूट जाता है

कहीं हंसती बहारें हैं कहीं रोती घटायें हैं
नहीं उम्मीद हो जिसकी उसे वो यूं मिलाता है

किसी के पास देखो तो हसीं दिलकश नज़ारे हैं
किसी को ज़िन्दगी भर वो न जाने क्यों सताता है

करें कितनी भी कोशीश हम उसे हम छू नहीं सकते
वही जाने कि वो क्यों इस तरह दुनिया चलाता है

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