Monday, October 3, 2011

हमसे तुम हो

मैं अगर एक
उभरता सितारा होता
तो बात कुछ और होती
लेकिन अब मैं
एक ढलता सूरज हूँ
इसलिये
बात कुछ और है,

वक़्त की अदालत ने
जो फ़ैसला दिया
उसके एवज़
बालों में चाँदी
चेहरे पे शिकन
हाथों में कमज़ोरी
और पांव में थकन मिली है,

तुम कहते हो
ये करो वो करो
ऐसे रहो वैसे रहो
इधर आओ,उधर जाओ
इसे ले जाओ,उसे ले आओ,
किससे कहूँ
मजबूरियों का तांता है
ज़ुबान पर ताला है
अपना न रहा अब कुछ
हुआ सब बेगाना है,

मगर फिर भी
ऊपरी अदालत का
फ़ैसला अभी बाक़ी है
मेरी अपील में
ये साफ़-साफ़ दर्ज है कि
तुमसे हम नहीं हैं
हमसे तुम हो,

इस निचली अदालत ने
सदा किसका साथ दिया है
कल मेरे साथ थी
आज तेरे साथ है
कल किसी और के साथ होगी
इसलिये
याद रखो कि
तुमसे हम नहीं हैं
हमसे तुम हो
हमसे तुम हो.....

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