Sunday, October 25, 2009

वहां से आने के बाद

इस तरह से कटी ज़िन्दगी वहां से आने के बाद
हर क़दम पे बढ़ी तशनगी वहां से आने के बाद

प्यार-नफ़रत, मुहब्बत-अदावत, वफ़ा-बेवफ़ाई
रिश्तों में बस रही टूटती वहां से आने के बाद

बात कुछ और थी वो शहर तेरे की मेरे यार
फिर न पाई कभी वो ख़ुशी वहां से आने के बाद

छोड़ कर घर तेरा, हम भटकते रहे दर-बदर
कोई तुझसा न मिला हमनशीं वहां से आने के बाद

जो मिले थे मुझे मशवरे मेरे चलने से पहले
भूल मैं सब गया वो तभी वहां से आने के बाद

डूब के रह गया आफ़ताबे हस्ती मिरा इक पल में
खो गई भीड़ में रोशनी वहां से आने के बाद

दिल मेरा अब कभी उस तरफ़ जाने का नाम न ले
उड़ गई वो मेरी सादगी वहां से आने के बाद

हैं सितमगर बहुत, हादसे ज़िन्दगी के निर्मल
हो न पाती कभी बन्दगी वहां से आने के बाद

3 comments:

  1. छोड़ कर घर तेरा, हम भटकते रहे दर-बदर
    कोई तुझसा न मिला हमनशीं वहां से आने के बाद


    -बहुत उम्दा ख्याल भाई जी!! बेहतरीन!!

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  2. कहीं आप इलाहाबाद के ब्लॉग सम्मलेन से तो नहीं लौटे हैं ?

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  3. इस तरह से कटी ज़िन्दगी वहां से आने के बाद
    हर क़दम पे बढ़ी तशनगी वहां से आने के बाद
    बहुत सुंदर पंक्तियां, बहुत बढिया गज़ल पढने मिली बधाई

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