लिख लेता हूँ
ख़ुद ही पढ़ लेता हूँ
गा लेता हूँ
खुद ही सुन लेता हूँ
दीवारों से बातें करता हूँ
तस्वीरों में खोजा करता हूँ
ख़्वाबों के महल
बनाता हूँ
तन्हाई में आवाज़
लगाता हूँ
यह दिल हरदम
तुझको ही
ढूँढा करता है
कोई भी बात चले
ज़िक्र तेरा ही
करता है
दीवाना है न...
दीवानों को
होश कहाँ रहती है
इश्क़ के मारों को
बस
इक लगन
लगी रहती है
Thursday, October 8, 2009
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