दामन में कभी फूल कभी ख़ार सजा लेता हूँ
राह में जो मिल जाये, हमराह बना लेता हूँ
चलना फ़ितरत है मेरी, दिन हो कि शब गहरी
सूरज जो साथ न हो, दीपक मैं जला लेता हूँ
खोया जो कहीं कुछ, ग़म उसका पाला नहीं मैंने
मिल जायें जो ख़ुशियाँ, मैं उनको मना लेता हूँ
रहता नहीं क़ाबू में जब, दर्दे दिल ये मेरा
अपनी आँखों में तब, सावन को बुला लेता हूँ
बेकल है आदम की बस्ती का अब हर कोना
कुदरत से तेरी अय रब, लौ मैं लगा लेता हूँ
मुझको मिलता नहीं जब, दोस्त कोई दुनिया में
हाले-दिल अपना, मैं निर्मल को सुना लेता हूँ
Tuesday, July 7, 2009
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खोया जो कहीं कुछ, ग़म उसका पाला नहीं मैंने
ReplyDeleteमिल जायें जो ख़ुशियाँ, मैं उनको मना लेता हूँ
-बेहतरीन फलसफा!!
hay hay ........
ReplyDeletemaar daala...
gazab ki rachna
gazab ka bhav !
haardik badhaai !