तुम मिले जो मुझे,बात बनने लगी
ज़िन्दगी को नई राह दिखने लगी
थी न रौनक ज़रा सी चमन में कहीं
अब तो फूलों की बरसात होने लगी
जो जगह थी अंधेरों में डूबी हुई
वो तेरी चाँदनी से चमकने लगी
सूझता कुछ नहीं था लबों को जहाँ
उन पे गीतों की सरगम मचलने लगी
रंग तस्वीर के सब थे फीके हुये
फिर से जीवन की बगिया महकने लगी
तुमसे रोशन है निर्मल के दिल का जहां
प्यार की इक शमा उस में जगने लगी
Wednesday, June 29, 2011
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