चलो कि
वहाँ जहाँ
असीमित हो जहां,
धरती का कोई
किनारा न हो
आकाश भी अनंत हो
बेअंत हो,
कहीं कोई सीमा नहीं
सोच पर कोई
बंधन नहीं,
सपनों पर कोई
पहरे नहीं
मरने-जीने की कोई
सौगन्ध नहीं,
जिस्मो रूह आज़ाद हों
हम-तुम नाशाद हों,
दुनिया की
भाग-दौड़ से परे
उम्र की हदों से दूर
दिलों के आईने में
रहें झांकते
हो न मजबूर,
वहाँ जहाँ
रिश्तॊं का शोर नहीं
एक का दूजे पे ज़ोर नहीं,
हो तो फ़कत
बहते पानी सा
आज़ादाना बहाव
हो तो केवल
वायु सा
अपरिमित फैलाव,
प्रकाश का एक
लघु बिम्ब
तब बने एक
विशाल प्रकाश-पुंज,
समो जायें
एक दूसरे में
कुछ इस क़दर कि
न रहे भेदभाव
न कोई अभाव
न अधिक झुकाव
न कोई गहरा लगाव
आओ कि चले
हम-तुम वहाँ...
Monday, August 15, 2011
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