कब हुआ हादसा कुछ पता नही चला
दिल था या जुनून कुछ पता नही चला
मुहब्ब्त की बातें प्यार के हसीन पल
आये भी गये भी कुछ पता नही चला
शौक़ था हमें भी उनके दिल में रहने का
फिर क्यों हुये जुदा कुछ पता नही चला
भोली सूरत भोली आंखे भोला सा अंदाज़
क़त्ल कब हुआ मेरा कुछ पता नही चला
इश्क़े बादल बिन बरसे ही गुज़र गया
किसने की बेवफ़ाई कुछ पता नही चला
बदली आंखे तो बदल गया हर मौसम
क्यों बदला मेरा यार कुछ पता नही चला
कितने ही सवाल मेरी नज़रों में थे उठे
क्या था उनका जवाब कुछ पता नही चला
कुछ युं सहा हमने तीरे बेरुख़ी उनका
टपका है ख़ूने जिगर कुछ पता नही चला
कभी पागल, कभी दीवाना कहा निर्मल को
कौन था गुनाहगार कुछ पता नही चला
Thursday, January 15, 2009
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बहुत ख़ूब
ReplyDelete------
चाँद, बादल और शाम
कुछ पता नही चला ....बहुत सुंदर!
ReplyDeleteBahut Khoob Nirmal Ji..
ReplyDeleteKya baat hai..
likhne lage hai aaj kal,
kavitayon ke sang vo gazal
kab sila shuru hua
kuch pata nahi chala??
sneh
shailja