Sunday, January 4, 2009

नया साल

समय ने चोला बदला है
उषा ने रंग गुलाबी घोला है
दिनकर की किरणों पे चल
संदेश नया इक आया है
मन की भावुकता ने फिर
गीत वही दुहराया है
हर दिल में अब
आशाओं के दीप जगें,
फिर से न कहीं भी
नफ़रत के कोई ख़ार चुभें
हालांकि, थका है, व्यथित है
पिछ्ला चरण हमारा,
तो भी उल्लासित हो, संयत हो
उतना ही अगला चरण हमारा,
बर्फ़ीले मौसम ने भी
आज हमें सिखलाया है
सुन्दर उज्जवल दाग़रहित जीवन हो
तो ही रोशन जग हो पाया है

No comments:

Post a Comment