Thursday, January 15, 2009

तकनीकी विद्या

ख़त्म हुआ है दौर ख़तों का
चला दौर अब ई-मेलों का
लगता नही पता ज़रा भी इन
भ्रमित अन्तर्जाली खेलों का

क्या-क्या हासिल नही है भाई
अन्तर्जाल की माया नगरी में
यूं लगता है सचमुच जैसे
हो भरा समन्दर गगरी में

जो तुम चाहो उसको लेने
बेहिचक अन्तर्जाल पे जाओ
कहीं न जाना, कहीं न आना
बैठे-बैठे शापिंग कर जाओ

नही ज़रूरत किसी दोस्त की
न ही ज़रूरत बैठकबाज़ी की
चाहिये केवल इक कम्प्यूटर
अपेक्षा नही कबूतरबाज़ी की

अगर बड़ों की अपनी है तो
छोटों की अपनी है साईट
हर उम्र को मिलती पूरी ख़ुशी
है जो सबका अपना राईट

तकनीकी विद्या की जीवन में
होती एक विशेष महत्ता
नेत्र तीसरा है ये कहलाती
पास है जिसके, उसकी सत्ता

सीख लो तुम भी जल्द इसे
वर्ना देर बहुत हो जायेगी
रह जाओगे तुम पीछे और
दुनिया आगे बढ़ जायेगी...

1 comment:

  1. यही है आज की दुनिया, भाई साहब. यथार्थ चित्रण.

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