नज़र आती नही कोई सूरत दिल को बहलाने की
रात है दियों की मगर उम्मीद नही जगमगाने की
बुझ गया था जो दिया इन तेज़ हवाओं के असर से
बेमुरव्व्त जहां ने उसे कोशिश न करी फिर जलाने की
एक और था बिचारा जो जलता ही रहा कहीं तन्हा तन्हा
रोशनी उसकी तो भी चुभती रही आंखों में ज़माने की
जिस दिये में हुआ ख़त्म कभी तेल कभी बाती न रही
लुटी लुटी सी रही दुनिया सदा उसके आशियाने की
उसकी रोशन निगाह से ही कट गया सफ़र तमाम
वर्ना बुझ ही जाती शमा निर्मल के ग़रीबख़ाने की
Saturday, January 10, 2009
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