Wednesday, January 14, 2009

रिश्ते जो रिस ते हैं

रिश्ते
जो रिस ते हैं
दर्द की इन्तहा से होकर
पल-पल गुज़रते हैं,
नीर बनके नयनों से
जब-तब निकलते हैं,
जीवन की धड़कनों में
घुन जैसे बसते हैं
रिश्ते
जो रिस ते हैं...

रिश्ते
जो रिस ते हैं
आकाश की देन हों
या पृथ्वी का उपहार,
जाने क्यों करते हैं
मन की दुनिया का संहार,
न जोड़े जाते हैं
न तोड़े जाते हैं,
न बताये जाते हैं
न छुपाये जाते हैं,
सम्बन्धों की चक्की में
हरदम पिसते हैं,
रिश्ते
जो रिस ते हैं...

रिश्ते
जो रिस ते हैं
उन पर
मुस्कानों का
लेप किया जाता है,
समय की औषधि से
उपचार किया जाता है,
समझौतों का
अमृत चखाया जाता है,
अनगिनत
प्रार्थनाओं का
अर्घ चढ़ाया जाता है,
मगर
बावले हैं वो
बमुश्किल ही
संभलते हैं,
रिश्ते
जो
रिस ते हैं...

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण, निर्मल जी.

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