Saturday, December 27, 2008

इश्क

इश्क़ का शौक़ जिनको होता है
मौत का न ख़ौफ उनको होता है

घूमते फिरते हैं वो दर बदर
ये मर्ज़ कहाँ हर किसी को होता है

ली होती है मंज़ूरी तड़पने की
मिला ख़ुदा से यही उनको होता है

चुनता है वो भी ख़ास बन्दों को ही
इसलिए न जिसको तिसको होता है

सहरा की रेत हो या फ़ांसी का फंदा
गिला कुछ भी न उनको होता है

अख्तियार में कुछ रह नहीं जाता
ये इशारा जब दिल को होता है

ख़्याल निर्मल को ये सता रहा है
खुदाया, क्यों नहीं ये सबको होता है

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