Sunday, July 5, 2009

जाने किन बातों की

जाने किन बातों की वो मुझको सज़ा देता है
जब भी मिलता है कभी, इक दर्द जगा देता है

दिल में उठती हैं जो लपटें, सहना है मुश्किल
जो भी देता है, वो शोलों को हवा देता है

ऐसी दुनिया में इतबारे मुहब्ब्त कैसे हो
अपने दिल को जहाँ, अपना दिल ही दग़ा देता है

दिल के दुश्मन को पहचाने तो कैसे आख़िर
अपनी हस्ती वो, सौ पर्दों में छुपा देता है

लड़ना बाहर से तो मुमकिन है क्या करें उसका
घर के अंदर से जो अंदर का पता देता है

जितना जी चाहे तू कर, दिले निर्मल पे सितम
कुछ भी हो जाये पर, दिल है कि दुआ देता है

2 comments:

  1. जाने किन बातों की वो मुझको सज़ा देता है
    जब भी मिलता है कभी, इक दर्द जगा देता है

    दिल में उठती हैं जो लपटें, सहना है मुश्किल
    जो भी देता है, वो शोलों को हवा देता है

    Too good, no words to say. Awesome...Why love is always painful?

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  2. दिल के दुश्मन को पहचाने तो कैसे आख़िर
    अपनी हस्ती वो, सौ पर्दों में छुपा देता है

    --बहुत उम्दा..हर शेर काबिले तारीफ!!

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