शुक्रिया, तेरा शुक्रिया
मेरे यार तेरा शुक्रिया
इक बार नहीं केवल
लक्ख बार तेरा शुक्रिया
शुक्रिया, तेरा शुक्रिया....
सांस की रफ़्तार का
दिल में उतरे प्यार का
वादा-ओ-इक़रार का
सुन्दर मेरे संसार का
शुक्रिया, तेरा शुक्रिया.....
तेरे रहमो-क़रम को मैं बयां
शब्दों में कर नहीं सकता
इस समन्दर को मैं अपने
हाथों में भर नहीं सकता
ज़िन्दगी की बहार का
ख़ूबसूरत यार का
यार के इज़हार का
दिलों के ऐतबार का
शुक्रिया, तेरा शुक्रिया.....
हर घड़ी, हर दिन तरसता
था, ये दिल तेरी दीद को
आ गया आराम दिल को
अब दर्शन हुये जो ईद को
ईद के त्योहार का
मनपसन्द उपहार का
बरसों के इंतज़ार का
आये अमन-ओ-क़्ररार का
शुक्रिया, तेरा शुक्रिया.....
कभी छोड़ न देना मुझे तू
दिलवर मेरे मंझधार में
छोड़ के दुनिया-जहाँ सब
आया हूँ तेरे दरबार में
आशिकों के ख़ुमार का
इस जहां के सिंगार का
ख़ुदाया तेरे प्यार का
पल-पल के चमत्कार का
शुक्रिया, तेरा शुक्रिया......
कह लिया और सुन लिया है
दिल का अफ़साना हुज़ूर
दे सभी को सुकूने-दिल तू
अब न तड़पाना हुज़ूर
इस दरोदीवार का
रहमत के आबशार का
दौलत बेशुमार का
मेरे परवरदीगार का
शुक्रिया, तेरा शुक्रिया
मेरे यार तेरा शुक्रिया
इक बार नहीं केवल
लक्ख बार तेरा शुक्रिया..........
Tuesday, March 31, 2009
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आपका भी बहुत बहुत शुक्रिया इस सुन्दर रचना के लिये
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ... शुक्रिया।
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