Tuesday, March 24, 2009

घड़ी भर के लिये आ ही जाईये

सारी उम्र न सही, घड़ी भर के लिये आ ही जाईये
इस ग़मगीन ज़िन्दगी में ज़रा मुस्कुरा ही जाईये

आपके आने से मिल जायेगी दिल को तस्कीन
इस रेगिस्तां में प्यार की बूंदे बरसा ही जाईये

न जाने कब से तारी है इक सन्नाटा सा यहाँ
आहट से क़दमों की, हलचल मचा ही जाईये

क्या पता आपको कैसे कटीं, घड़ियां इंतज़ार की
अब न सतायें और, लगी दिल की बुझा ही जाईये

कितना है तन्हा आज, दुनिया की भीड़ में ’निर्मल’
मरहले उसके आकर आप, अब सुलझा ही जाईये

No comments:

Post a Comment