सारी उम्र न सही, घड़ी भर के लिये आ ही जाईये
इस ग़मगीन ज़िन्दगी में ज़रा मुस्कुरा ही जाईये
आपके आने से मिल जायेगी दिल को तस्कीन
इस रेगिस्तां में प्यार की बूंदे बरसा ही जाईये
न जाने कब से तारी है इक सन्नाटा सा यहाँ
आहट से क़दमों की, हलचल मचा ही जाईये
क्या पता आपको कैसे कटीं, घड़ियां इंतज़ार की
अब न सतायें और, लगी दिल की बुझा ही जाईये
कितना है तन्हा आज, दुनिया की भीड़ में ’निर्मल’
मरहले उसके आकर आप, अब सुलझा ही जाईये
Tuesday, March 24, 2009
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