जैसा तुम कहो, हमें मंज़ूर है
जो भी तुम चाहो, हमें मंज़ूर है
जैसा तुम कहो.....
बैठी रहो बस यूं ही मेरे रूबरू
तेरा ही ख़्याल मुझे तेरी जुस्तजू
तेरे लिये सब, हमें मंज़ूर है
जैसा तुम कहो.....
रूठ जाना तेरा, फिर मान जाना
प्यारा-प्यारा सा अंदाज़ ये सुहाना
तेरी हर अदा, हमें मंज़ूर है
जैसा तुम कहो.....
आँखें तेरी करें, प्यार का इज़हार
होंठ चाहे करें, जितना भी इन्कार
होंठों की मिठास, हमें मंज़ूर है
जैसा तुम कहो.....
दूर तेरा जाना, हमें नामंज़ूर है
इतना तो बताओ क्या कुसूर है
साथ हर घड़ी का, हमें मंज़ूर है
जैसा तुम कहो.....
पास कोई और तेरे, ये क़ुबूल नहीं
कोई और छूये तुझे, ये क़ुबूल नहीं
रहो मेरे दिल में, हमें मंज़ूर है
जैसा तुम कहो.....
शिकवा नहीं कोई मेरे यार तुमसे
रंजिश भी नहीं है मुझे कोई तुमसे
तेरा हर गिला, हमें मंज़ूर है
जैसा तुम कहो.....
कर लो क़ुबूल हमें, आज की रात
हम आयेंगे ज़रूर, आज की रात
आज हर शर्त, हमें मंज़ूर है
जैसा तुम कहो.....
हमको तेरे आँसू, कभी मंज़ूर नहीं
चेहरे की उदासी, कभी मंज़ूर नहीं
तेरी हर ख़ुशी, हमें मंज़ूर है
जैसा तुम कहो.....
ख़ुदा से मिला जो प्यार का ये तोहफ़ा
ज़िन्दगी बना देगा, ये ख़ूबसूरत तोहफ़ा
उसका ये उपहार, हमें मंज़ूर है
जैसा तुम कहो, हमें मंज़ूर है
जो भी तुम चाहो, हमें मंज़ूर है
जैसा तुम कहो............
Saturday, April 4, 2009
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हमें मंज़ूर है
ReplyDeleteजैसा तुम कहो............
बहुत सुंदर ...
निएमल जी,बहुत अच्छी रचना है।बधाई।
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