Saturday, October 1, 2011

अजीब हो तुम

अजीब हो
तुम भी सनम,
जब तो आँखों में
आँसू छलकते हैं
नज़र तुम्हारी
हम पर टिकी होती है,
जब आँखों में
मस्ती के बादल लहराते हैं
नज़र तुम्हारी
कहीं और टिकी होती है,

जब होंठों पे तुम्हारे
दर्द भरी कोई
दास्तान मचलती है
उसे सुनने वाले
केवल हम होते हैं,
जब होंठों पे तुम्हारे
नशीली मदिरा छलकती है
उसे चखने वाले
कोई और होते हैं,

जब दिल कभी तुम्हारा
उदासियों की अनगिनत
तहों के नीचे दबा होता है
उसे वहाँ से निकालने वाले भी
हम ही होते हैं,
पर जब कभी दिल तुम्हारा
आस्मान की बुलन्दियां
छू रहा होता है
उसे वहाँ से लपकने वाले
कोई और होते हैं,

अजीब हो
तुम भी सनम,
काश कि कुछ तो समझते
कुछ तो जानते,
अब
समुन्दर कैसे बताये तुम्हें
कि उसके भीतर क्या-क्या छुपा है
परबत कैसे बताये तुम्हें
कि उसके अन्दर कैसा-कैसा
लावा दबा है
अजीब हो
तुम भी सनम.....

2 comments:

  1. इसी अजीबियत का नाम प्यार है ..अच्छी प्रस्तुति

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