ख़ुदा ही हरदम
मैं चल पड़ा अब तेरे सहारे
पड़ा था कबसे कहीं किनारे
कहीं न हरकत कहीं न हलचल
जमे हुये थे क़दम हमारे
बन्द घड़ी हो गया था जीवन
सुने न कोई किसे पुकारे
कभी मुझे कुछ नज़र न आया
दिखे जो तुम तो दिखे नज़ारे
कहीं न जाने देना है तुझको
बने हो अब तो सनम हमारे
तेरी तमन्ना तेरी इबादत
यही मुक़द्दर करे इशारे
खुदा ही हरदम ख़ुदा ही हरपल
संग हमारे संग तुम्हारे
Tuesday, November 15, 2011
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सुन्दर!
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