रुक जाता हूँ, चल पड़ता हूँ
आग लगे तो जल पड़ता हूँ
पानी जैसी प्रीत निभाऊँ
प्यार मिले तो गल पड़ता हूँ
जिसको चाहूँ शाम-सवेरे
मिल जाये तो खिल पड़ता हूँ
दुश्मन-दोस्त गहरा रिश्ता
दिल टूटे तो हिल पड़ता हूँ
पत्थर जैसा बनना मुश्किल
दिल माने तो घुल पड़ता हूँ
ऊँचा उड़ना चाहूँ भी तो
पर कट जाये हिल पड़ता हूँ
देखा है कब नया-पुराना
हर साँचे में ढल पड़ता हूँ
रुक न पाऊँ देर तलक मैं
निर्मल के संग चल पड़ता हूँ
Tuesday, September 8, 2009
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gazab
ReplyDeleteki
gazal
____________mubaaraq.......
पानी जैसी प्रीत निभाऊँ
ReplyDeleteप्यार मिले तो गल पड़ता हूँ
जिसको चाहूँ शाम-सवेरे
मिल जाये तो खिल पड़ता हूँ
दुश्मन-दोस्त गहरा रिश्ता
दिल टूटे तो हिल पड़ता हूँ
लाजवाब गज़्ल बधाई
जिसको चाहूँ शाम-सवेरे
ReplyDeleteमिल जाये तो खिल पड़ता हूँ
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ।
its good one, changi gazal hai sidhu sahib
ReplyDeletecongrat