Friday, September 4, 2009

देखना हो तो

देखना हो तो खुली आँख से देखना
बन्द आँखों से वो क्या नज़र आयेगा

ग़ौर से देखोगे अपने अंदर जो तुम
मुस्कुराता हुआ वो नज़र आयेगा

ख़्वाब होंगे तेरे जिस क़दर बेकराँ
उस क़दर ही वो तुझमें उभर आयेगा

ज़िन्दगी की डगर टेढ़ी-मेढ़ी तो क्या
चाहोगे तो वो शामो सहर आयेगा

बस यही इक शर्त, दिल बड़ा चाहिये
फिर वो आराम से तेरे घर आयेगा

प्यार को छोड़ बंदिश नहीं कोई भी
प्यार हो तो हर घड़ी हर पहर आयेगा

रास्ते हों कठिन, ये तो भी जान लो
देर कितनी भले हो मगर आयेगा

उठते अब क्यों नहीं हाथ निर्मल तेरे
क्या कहोगे उसे जब नज़र आयेगा

1 comment:

  1. ख़ूब !
    बहुत ख़ूब ग़ज़ल !
    वाह.........क्या बात है

    ग़ौर से देखोगे अपने अंदर जो तुम
    मुस्कुराता हुआ वो नज़र आयेगा

    ____बधाई !

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