उसने पूछा
किस मिट्टी के बने हो,
दिल पत्थर का है
या कि
चिकने घड़े हो?
गर्म-तेज़ हवाओं से
आप घबराते नहीं
कड़वी-तीखी बातों से
कभी तिलमिलाते नहीं,
वक़्त की चोटों से घाव
आपको लगते नहीं
जानलेवा हमलों से भी
हौसले कभी खोते नहीं,
सच-सच बतायें कि
माजरा क्या है
ये सब आख़िर
कहाँ से मिला है?
हमने कहा
ऐसा नहीं है,
ऐसा नहीं है कि
दुख के बादल
कभी मंडराते ही नहीं
ऐसा नहीं है कि
ग़म कभी आते ही नहीं,
हाँ,
ये अलग बात है कि
कुछ को हम
फ़लांग जाते हैं
कुछ को हम
रौंद जाते हैं,
कुछ को हम
निग़ल जाते हैं
तो कुछ को हम
काट जाते हैं,
फिर भी,
कुछ होते हैं जो
चिपके रहते हैं
बहुत देर तक
चुभते रहते हैं वो
दिल में अपने
हर घड़ी हर पल,
क्या करें
दिल की मिट्टी से
बनी है काया अपनी
यही दौलत तो
यही है माया अपनी,
दर्द सींचते हैं हमको
ज़ख़्म पालते हैं हमको,
ये ज़िन्दगी के ज़लज़ले ही
इस क़दर ढालते हैं हमको,
वो कहते हैं न,
जल की गहराई से
जो डरता है
वो रोज़-रोज़ डूबता है
वो रोज़-रोज़ मरता है
वो रोज़-रोज़ मरता है...
Saturday, July 30, 2011
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बेहद गहन रचना।
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